बघेली डिक्शनरी
बघेली शब्दकोश का महत्व
मध्य प्रदेश का बघेलखंड ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से काफ़ी समृद्ध माना जाता है। बघेलवंशी राजाओं द्वारा बसाए गए इस अंचल की भाषा बघेली कहलाई जाती है। यह मधुर भाषा मध्य प्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर, कटनी और जबलपुर में बोली जाती है। उत्तर प्रदेश में चित्रकूट, मिर्जापुर तथा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर एवं कोरिया में भी यह संवाद की भाषा है। बघेलखंडी, रिमही, रिवाई जैसे नामों से भी इस भाषा को जाना जाता है। पहले इसके लिए ‘कैथी लिपि’ का प्रयोग किया जाता था, लेकिन वर्तमान में यह ‘देवनागरी’ में भी लिखी जा रही है। हालाँकि कुछ जानकार बघेली को अवधी की उपबोली मानते हैं, लेकिन दोनों भाषाओं में व्याकरणिक भिन्नता स्पष्ट दिखाई देती है। उदाहरण के तौर पर बघेली में भूतकाल की क्रिया में ‘ते’ अथवा ‘तैं’ लगता है, जबकि अवधी में ऐसा नहीं है। इसी तरह बघेली में अ की जगह अँ, ए की जगह अइ तथा औ की जगह अउ जैसी ध्वनियों का प्रयोग होता है।
बघेली भाषा के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से बघेलखंड को अच्छी पहचान दी है। यहाँ की कला, संस्कृति एवं सामाजिक रहन-सहन को कवियों ने बड़े सहज भाव से अपनी रचनाओं का विषय बनाया। किसानों, दलितों और शोषितों की आवाज को भी सशक्त अभिव्यक्ति दी। सोहर, कजरी, जेवनार, अंजुरी, सुहाग, हिंदुली, बरुआ आदि लोकगीत बघेलखंड में बहुत लोकप्रिय हैं। यहाँ के लोक साहित्य में प्रकृति को महत्व दिया गया है क्योंकि यहाँ के लोग प्रकृति के संग जीते हैं। बघेली भाषा के संरक्षण और विकास के लिए देश-विदेश में प्रयास हो रहे हैं। इसमें अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय की अहम भूमिका है। साहित्यकारों के साथ ही स्वयंसेवी संस्थाएँ भी इस काम में जुटी हुई हैं। ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ ने भाषाओं के संरक्षण और संवर्द्धन की अपनी योजना में बघेली की शब्द-संपदा को शामिल किया है। इससे लोगों को ‘बघेली शब्दकोश’ की सुविधा भी उपलब्ध हो रही है।
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हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली
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