कुमाउँनी डिक्शनरी
कुमाउँनी हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश
कुमाऊँनी शब्दकोश का
महत्व
पुराणों में वर्णित ‘मानसखंड’ ही आज का कूर्मांचल या कुमाऊँ है। यहाँ के प्राचीन मंदिरों की शिलाएँ और ताम्रपत्र इस बात के साक्षी हैं कि छठवीं से लेकर 18 वीं शताब्दी तक कत्यूरी और चंद राजाओं के शासनकाल में कुमाऊँ राज्य की आधिकारिक भाषा ‘कुमाऊँनी’ थी। यह भाषा उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिलों में बोली जाती है। इसके अलावा दिल्ली, मुंबई आदि महानगरों में भी लाखों लोग कुमाऊँनी बोलते हैं। पश्चिमी नेपाल में भी इस भाषा का प्रभाव है। कुमाऊँनी की कई बोलियाँ हैं जिनमें जोहारी, मांझकुमैया, दानपुरिया, अस्कोटि, सिराली, सोरयाली, चुगरख्यैली, कुमईया, गंगोली, खसपर्जिया, फल्दकोटि, पछाइ, रचभैसि, भाबरी आदि मुख्य हैं। कुमाऊँनी भाषा के उद्भव के संबंध में दो मत हैं। एक मत इसका उद्भव ‘दरद-खस प्राकृत’ से मानता है, जबकि दूसरे मतानुसार इसका उद्भव ‘शौरसेनी अपभ्रंश’ से हुआ है।
जानकारों के अनुसार कुमाऊँनी में लिखित साहित्य की परंपरा 19 वीं शताब्दी से मिलती है जो इस भाषा के प्रथम कवि गुमानी पंत से लेकर आज तक जारी है। देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली इस भाषा को समृद्ध करने में कई साहित्यकारों, गीतकारों और लोकगायकों का महत्वपूर्ण योगदान है। पर्वतीय अंचल की इस मधुर भाषा के ‘बेडू पाको बारामासा’ जैसे मधुर गीत ग़ैर पर्वतीय अंचलों के लोगों को भी बहुत पसंद आते हैं। वर्तमान में भी कुमाऊँनी भाषा में साहित्य सृजन हो रहा है। गीतों कविताओं की रचना के साथ ही उपन्यासों और नाटकों का प्रकाशन हो रहा है। कुछ शब्दकोश भी निकल चुके हैं। इसके बावजूद बुद्धिजीवियों को यह चिंता सताती रही है कि जिस तरह नई पीढ़ी कुमाऊँनी से दूर हो रही है, उससे भविष्य में कहीं इस भाषा पर संकट के बादल न मंडरा जाएँ। बुद्धिजीवी और सामाजिक संगठन इस भाषा के संरक्षण हेतु प्रयासरत हैं। ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ ने भाषाओं के संरक्षण और संवर्द्धन की अपनी योजना में कुमाऊँनी शब्द-संपदा को भी शामिल किया है। इस योजना के तहत लोगों को ‘कुमाऊँनी शब्दकोश’ की सुविधा भी मिल रही है।
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