ब्राह्मण

ब्राह्मण के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

ब्राह्मण के ब्रज अर्थ

पुल्लिंग

  • दे० 'बिप्र'

ब्राह्मण के हिंदी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • चार वर्णो में सबसे श्रेष्ठ वर्ण , प्राचीन अर्यो के लोकविभाग के अनुसार सबसे ऊँचा माना जानेवाला विभाग , हिंदुओं में सबसे ऊँची जाति जिसके प्रधान कर्म पठन पाठन, यज्ञ ज्ञानोपदेश आदि हैं
  • उक्त जाति या वर्ण का मनुष्य

    विशेष
    . ऋग्वेद के पुरूषसूक्त में ब्राह्मणों की उत्पत्ति विराट् या ब्रह्म के मुख से कही गई है । अध्यापन, अध्ययन, यजन, याजन, दान ओर प्रतिग्रह ये छह कर्म ब्राह्मणों के कहे गए हैं, इसी से उन्हें पट्कर्मा भी कहते हैं । ब्राह्मण के मुख में गई हुई सामग्री देवताओं को मिलती है; अर्थात उन्हीं के मुख से वे उसे प्राप्त करते हैं । ब्राह्मणों को अपने उच्च पद की मर्यादा रक्षित रखने के लिये आचरण अत्यंत शुद्ध ओर पवित्र रखना पडता था । ऐसी जीविका का उनके लिये निषेध है जिससे किसी प्राणी को दु:ख पहुँचे । मनु ने कहा है कि उन्हें ऋत, अमृत, मृत, प्रमृत या सत्यानृत द्वारा जीविका निर्वाह करना चाहिए । ऋत का अर्थ है भूमि पर पड़े हुए अनाज के दानों को चुनना (उंछ वृत्ति) या छोड़ी हुई बालों से दाने झाड़ना (शिलवृत्ति) । बिना माँगे जो कुछ मिल जाय उसे ले लेना अमृत वृति है; भिक्षा माँगने का नाम है मृतवृत्ति । कृषि 'प्रमृत' वृति है योर वाणिज्य सत्यानृत वृति' है । इन्ही वृत्तियों के अनुसार ब्राह्मण चार प्रकार का कहे गए हैं—कुशूलधान्यक, कुभीधान्यक, त्र्यैहिक और अश्वस्तनिक । जो तीन वर्ष तक के लिये अन्नादि सामग्री संचित कर रखे उसे कुशलधान्यक, जो एक वर्ष के लिये संचित करे उसे कुंभीधान्यक, जो तीन दिन के लिये रखे, उसे त्र्यैहिक और जो नित्य संग्रह करे ओर नित्य खाय उसे अश्वस्तनिक कहते है । चारो में अश्वस्तनिक श्रेष्ठ है ।

  • वेद का वह भाग जो मंत्र नहीं कहलाता , वेद का मंत्राति- रिक्त अंश
  • विष्णु
  • शिव
  • अग्नि
  • पुरोहित
  • अठ्ठाईसवाँ नक्षत्र , अभिजित् (को॰) ९
  • ब्रह्म समाज के लिये प्रयुक्त संक्षिप्त रूप

ब्राह्मण के पर्यायवाची शब्द

संपूर्ण देखिए

ब्राह्मण के कन्नौजी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • हिन्दुओं के चार वर्णों में से एक

ब्राह्मण के मैथिली अर्थ

संज्ञा

  • वैदिक समाजक चारि वर्गमे एक जकर कार्यक्षेत्र धर्म ओ विद्या छल
  • वेदक व्याख्यात्मक भाग

Noun

  • one of the four classes of Vedic society devoted to learning and religion.
  • explanatory appindices to Vedas.

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