chitrakalaa meaning in english

चित्रकला

चित्रकला के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

चित्रकला के अँग्रेज़ी अर्थ

Noun, Feminine

  • (art of) painting
  • drawing

चित्रकला के हिंदी अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • चित्र बनाने की विद्या, चित्रकारी, तस्वीर बनाने का हुनर

    विशेष
    . चित्रकला का प्रचार चीन, मिस्र, भारत आदि देशों में अत्यंत प्राचीन काल से है। मिस्र से ही चित्रकला यूनान में गई, जहाँ उसने बहुत उन्नति की। ईसा से 1400 वर्ष पहले मिस्र देश में चित्रों का अच्छा प्रचार था। लंदन के ब्रिटिश म्युज़ियम में 3000 वर्ष तक के पुराने मिस्री चित्र हैं। भारतवर्ष में भी अत्यंत प्राचीन काल से यह विधा प्रचलित थी इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं। रामायण में चित्रों, चित्रकारों और चित्रशालाओं का वर्णन बराबर आया है। विश्वकर्मीय शिल्पशास्त्र में लिखा है कि स्थापक, तक्षक, शिल्पी आदि में से शिल्पी को ही चित्र बनाना चाहिए। प्राकृतिक दृश्यों को अंकित करने में प्रचीन भारतीय चित्रकार कितने निपुण होते थे इसका कुछ आभास भवभूति के उत्तररामचरित के देखने से मिलता है जिसमें अपने सामने लाए हुए वनवास के चित्रों को देख सीता चकित हो जाती हैं। यद्यपि आजकल कोई ग्रंथ चित्रकला पर नहीं मिलता है, तथापि प्राचीन काल में ऐसे ग्रंथ अवश्य थे। काश्मीर के राजा जयादित्य की सभा के कवि दामोदर गुप्त आज से 1100 वर्ष पहले अपने कुट्टनीमत नामक ग्रंथ में चित्रविद्या के 'चित्रसूत्र' नामक एक ग्रंथ का उल्लेख किया है। अजंता गुफा के चित्रों में प्रचीन भारतवासियों की चित्र निपुणता देख चकित रह जाना पड़ता है। बड़े-बड़े विज्ञ युरोपियनों ने इन चित्रों की प्रशंसा की है। उन गुफाओं में चित्रों का बनाना ईसा से दो सौ वर्ष पूर्व से आरंभ हुआ था और आठवीं शताब्दी तक कुछ न कुछ गुफाएँ नई खुदती रहीं। अत: डेढ़-दो हजार वर्ष के प्रत्यक्ष प्रमाण तो ये चित्र अवश्य हैं। चित्रविद्या सीखने के लिए पहले प्रत्येक प्रकार की सीधी टेढ़ी, वक्र आदि रेखाएँ खींचने का अभ्यास करना चाहिए। इसके उपरांत रेखाओं के ही द्वारा वस्तुओं के स्थूल ढाँचे बनाने चाहिए। इस विद्या में दूरी आदि के सिद्धांत का पूरा अनुशीलन किए बिना निपुणता नहीं प्राप्त हो सकती। दृष्टि के समानांतर या ऊपर-नीचे के विस्तार का अंकन तो सहज है, पर आँखों के ठीक सामने दूर तक गया हुआ विस्तार अंकित करना कठिन विषय है। इस प्रकार की दूरी का विस्तार प्रदर्शित करने की क्रिया को 'पर्सपेक्टिव' (Perspective) कहते हैं। किसी नगर की दूर तक सामने गई हुई सड़क, सामने को बही हुई नदी आदि के दृश्य बिना इसके सिद्धांतों को जाने नहीं दिखाए जा सकते। किस प्रकार निकट के पदार्थ बड़े और साफ़ दिखाई पड़ते हैं और दूर के पदार्थ क्रमश: छोटे और धुँधले होते जाते हैं, ये सब बातें अंकित करनी पड़ती हैं। देखें चित्र उदाहरण के लिए दूर पर रखा हुआ एक चौखूँटा संदूक लीजिए। मान लीजिए कि आप उसे एक ऐसे किनारे से देख रहे हैं जहाँ से उसके दो पार्श्व या तीन कोण दिखाई पड़ते हैं। अब चित्र बनाने के निमित्त हम एक पेंसिल आँखों के समानांतर लेकर एक आँख दबाकर देखेंगे तो संदूक की सबके निकटस्थ खड़ी कोण रेखा ऊँचाई) सबसे बड़ी दिखाई देगी। जो पार्श्व अधिक सामने रहेगा, उसके दूसरे ओर की कोणरेखा उससे छोटी और जो पार्श्व कम दिखाई देगा, उसके दूसरे ओर की कोण रेखा सबसे छोटी दिखाई पड़ेगी। अर्थात् निकटस्थ कोण रेखा से लगा हुआ उस पार्श्व का कोण जो कम दिखाई देता है, अधिक दिखाई पड़ने वाले पार्श्व के कोण से छोटा होगा। दूसरा सिद्धांत आलोक और छाया का है जिसके बिना सजीवता नहीं आ सकती। पदार्थ का जो अंश निकट और सामने रहेगा वह खुलता (आलोकित) और स्पष्ट होगा। जो दूर या बग़ल में पड़ेगा, वह स्पष्ट और कालिमा लिए होगा। पदार्थों का उभार और गहराई आदि भी इसी आलोक और छाया के नियमानुसार दिखाई जाती है। जो अंश उठा या उभरा होगा, वह अधिक खुलता होगा और जो धँसा या गहरा होगा वह कुछ स्याही लिए होगा। इन्हीं सिद्धांतों को न जानने के कारण बाज़ारू चित्रकार शीशे आदि पर जो चित्र बनाते हैं वे खेलवाड़ से जान पड़ते हैं। चित्रों में रंग एक प्रकार की कूँची से भरा जाता है जिसे चित्रकार क़लम कहते हैं। पहले यहाँ गिलहरी की पूँछ के बालों की क़लम बनती थी। अब विलायती ब्रुश काम में आते हैं।

    उदाहरण
    . श्याम चित्रकला प्रतियोगिता में प्रथम आया।

चित्रकला के तुकांत शब्द

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