द्रव्य

द्रव्य के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

द्रव्य के मैथिली अर्थ

संज्ञा

  • पदार्थ
  • धातु
  • उपादान, सामग्री
  • धन

Noun

  • matter.
  • metal.
  • material
  • money.

द्रव्य के अँग्रेज़ी अर्थ

Noun, Masculine

  • substance, matter
  • money

Adjective

  • material, substantial

द्रव्य के हिंदी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • वस्तु, पदार्थ, चीज़, वह पदार्थ जो क्रिया और गुण अथवा केवल गुण का आश्रय हो, वह पदार्थ जिसमें गुण और क्रिया अथवा केवल गुण हो और जो समवायिक कारण हो

    विशेष
    . वैशेषिक में द्रव्य नौ कहे गए हैं—पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा और मन। इनमें से पृथ्वी जल, तेज, वायु, आत्मा और मन ये छह द्रव्य ऐसे हैं जिनमें क्रिया और गुण दोनों हैं। आकाश, दिक् और काल ये तीन ऐसे हैं जिनमें क्रिया नहीं केवल गुण हैं। पाँच द्रव्यों में से केवल चार सावयव हैं— पृथ्वी, जल, तेज और वायु। ये चार द्रव्य उत्पत्ति धर्म वाले माने गए हैं। ये परमाणु रूप से नित्य और कार्य (स्थूल) रूप से अनित्य हैं। इन्हीं परमाणुओं के योग से सृष्टि होती है। प्रशस्तपाद भाष्य में लिखा है कि जीवों के कर्मफल भोग का समय जब आता है तब जीवों के अदृष्ट के बल से वायु के परमाणुओं में चलन उत्पन्न होता है। इस चलन से परमाणुओं में परस्पर संयोग होता है। दो-दो परमाणुओं के मिलने से 'द्वयणुक' और तीन द्वयणुकों के मिलने से 'त्रसरेणु' उतन्न होता है। इस प्रकार एक महान् वायु की उत्पत्ति होती है। महान् वायु में पहमाणुओं के संयोग से क्रमशः जल द्वयणुक, जल त्रसरेणु और फिर महान् जलनिधि उत्पन्न होता है। इस जल में पृथ्वी परमाणुओं के परस्पर संयोग द्वारा द्वयणुकादि क्रम से महापृथ्वी की उत्पत्ति होती है, फिर उसी जलनिधि में तेजस परमाणुओं के परस्पर संयोग से तेजस द्वयणुकादि क्रम से महान् तेजोराशषि की उत्पत्ति होती है, इस प्रकार वैशेषिक ने चार भूतों के अनुसार चार तरह के परमाणु माने हैं— पृथ्वी परमाणु जल परमाणु तेज परमाणु और वायु परमाणु, इन्हीं परमाणुओं से ये चार भूत उत्पन्न होते हैं, पाचवाँ द्रव्य आकाश निरवयवप, विभु और नित्य है, न उसके टुकड़े होते हैं और न उसका नाश होता है, आकाश की ही तरह काल और दिक् भी विभु और नित्य हैं, आत्मा एक अमूर्त द्रव्य है जो ज्ञान का अधिकरण और किसी-किसी के मत से ज्ञान का समवायिकारण है, मन नित्य और मूर्त माना गया है, क्योंकि यदि मूर्त न होता तो उसमें क्रिया न होती, वैशेषिक मन को अणुरूप मानता है क्योंकि एक क्षण में एक ही इंद्रिय का संयोग उसके साथ हो सकता है, जैनों के अनुसार द्रव्य गुणों और प्रयायों का स्थान है और सदा एकरस रहता है, उसके भीतर भेद नहीं पड़ता, जैन 6 द्रव्य मानते हैं— जीव, धर्म अधर्म, पुड़गल, आकाश और काल।

  • सामग्री, सामान, उपादान, वह जिससे कोई वस्तु बनी हो
  • धन, दौलत, रुपया पैसा
  • पीतल
  • औषध, भेषज
  • मद्य
  • लेप
  • गोंद
  • गाय

विशेषण

  • द्रुम संबंधी, पेड़ का, पेड़ से निकला हुआ
  • पेड़ के ऐसा

द्रव्य के कुमाउँनी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • वस्तु, पदार्थ, चीज़, धन-सम्पत्ति, दौलत

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