dvaitvaad meaning in hindi
द्वैतवाद के हिंदी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
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वह दार्शनिक सिद्धांत जिसमें आत्मा और परमात्मा अर्थात् जीव और ईश्वर को दो भिन्न पदार्थ मानकर विचार किया जाता है
विशेष
. उत्तरमीमांसा या वेदांत को छोड़ शेष पाँचों दर्शन द्वैतवादी माने जाते हैं। द्वैतवादियों का कथन है कि ब्रह्म और जीव का भेद नित्य है पर अद्वैतवादी कहते हैं कि यह भेदज्ञान भ्रम है। जिस समय जीव अपने को ब्रह्म स्वरूप समझ लेता है उस समय वह मुक्त हो जाता है। केवल उपाधि के कारण जीव अपने को ब्रह्म से भिन्न समझता है, उपाधि हट जाने पर वह ब्रह्म में मिल जाता है। द्वैतवादी जीव की उपाधि को नित्य मानते हैं पर अद्वैतवादी उसे हटाने की चेष्टा करने का उपदेश देते हैं। जिस प्रकार अदैतवादी 'तत्वमसि' उपनिषद् के इस महावाक्य को मूल मानकर चलते हैं उसी प्रकार द्वैतवादी भी। पर दोनों उससे भिन्न-भिन्न अर्थ लेते हैं। अद्वैतवादी 'तत्वमसि' का सीधा अर्थ लेते हैं कि 'तुम वही (ब्रह्म) हो', पर द्वैतवादी मध्वाचार्य ने खींच-तानकर उसका अर्थ लगाया है 'तस्य त्वं असि' अर्थात् तुम उसके हो। न्याय और वैशेषिक में तीन नित्य पदार्थ माने गए हैं—जीवात्मा, परमेश्वर और परमाणु। इस प्रकार के द्वैतवाद का खंडन ही शंकर ने अपने अद्वैतवाद द्वारा किया है। जिस प्रकार शंकराचार्य ने वेदांतसूत्र का भाष्य करके अपना अद्वैतवाद स्थापित किया है उसी प्रकार मध्वाचार्य ने उक्त सूत्र का एक भाष्य रचकर द्वैतवाद का मंडन किया है। उनके मत से परमेश्वर स्वतंत्र है और जीव परमेश्वर के अधीन है। वेदांती लोग जो जगत् को ईश्वर से अभिन्न अथवा रज्जु सर्पवत् मानते हैं और जीव में ईश्वर का आरोप करते हैं वह ठीक नहीं। जगत् और जीव सत्य है और ईश्वर से भिन्न हैं। 'एकमेवाद्वितीय' वाक्य का अर्थ यह नहीं है कि ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं, जैसा कि अद्वैतवादी कहते हैं। उसका अर्थ है कि ईश्वर बहुत नहीं एक ही है। 'एव' शब्द से मध्वाचार्य यह ध्वनि निकालते हैं कि ईश्वर सदा एक ही रहता है, एकत्व उसका स्वभाव है वह अनेक हो नहीं सकता। अद्वितीय का अर्थ यह है कि द्वितीय जो जीव और जगत् है सो वह नहीं है। जीव और जगत् उसकी सृष्टि है। इस प्रकार मध्वाचार्य ने द्वैतभाव का मंडन किया है। रामानुज का विशिष्टाद्वैत वाद द्वैत और अद्वैत के बीच का मार्ग है, द्वैतवाद से उसमें बहुत अधिक भेद नहीं है। - वह दार्शनिक सिद्धांत जिसमें भूत और चित् शक्ति अथवा शरीर और आत्मा दो भिन्न पदार्थ माने जाते हैं
- जीव और प्रकृति या विश्व और ब्रह्म की भिन्नता का मत
- दो भिन्न सिद्धांतों को स्वीकृत करने वाली विचारधारा (ड्यूअलिज़म)
- भेदवाद, भेदज्ञान
- 'अद्वैतवाद' का विलोम
द्वैतवाद के तुकांत शब्द
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