गाँडर

गाँडर के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

गाँडर के हिंदी अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • मूँज की तरह की एक घास जिसकी पत्तियाँ बहुत पतली और हाथ सवा हाथ लंबी होती है, बीरन, खस

    विशेष
    . जड़ से इसके अंकुर गुच्छो में निकलते हैं। यह घास तराई में तथा ऐसे स्थानों पर होती है जहाँ पानी इकट्ठा होता है। नैपाल की तराई में तालों और झीलों के किनारे यह बहुत उपजती है। इसकी सूखी जड़ जेठ असाढ़ से पनपती है और उसमें से बहुत में अंकुर निकलते हैं जो बढ़ते जाते हैं। कुआर के महीने में बीच से पतली-पतली सीकें निकलती हैं, जिनके सिरे पर छोटे-छोटे जीरे लगते हैं। किसान सीकों को निकालकर उनसे झाड़ू पंखे टोकरियाँ आदि बनाते हैं और पौधों को काटकर उनसे छप्पर छाते हैं। इस घास की जड़ सुगंधित होती है और उसे संस्कृत में उशीर तथा फ़ारसी में खस कहते हैं। यह पतली, सीधी और लंबी होती है और बाज़ारों में खस के नाम से बिकती है। खस का अतर निकाला जाता है और उसकी टट्टियाँ भी बनती हैं। खस के नैचे भी बाँधे जाते हैं।

    उदाहरण
    . गाँडर मूज की तरह का होता है। . सो मैं कुमति कहौ केहि भाँती। बाजु सुराग कि गाँडर ताँती।

  • एक प्रकार की दूब जिसमें बहुत सी गाँठे होती हैं, गंडदूर्वा

    विशेष
    . यह ज़मीन पर दूर तक फैलती और जगह-जगह जड़ पकड़ती जाती है। पशु इसे बड़े चाव से खाते हैं। यह कड़ुई, कसैली और मीठी होती है, दाह, तृषा और कफ़ पित्त को दूर करती है तथा रुधिर के विकार को हरती है। भावप्रकाश में इसे लोहद्राविणी अर्थात् लोहे को गलाने वाली लिखा है।

गाँडर के बुंदेली अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • एक प्रकार की घास

गाँडर के तुकांत शब्द

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