ज्वर

ज्वर के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

ज्वर के मैथिली अर्थ

संज्ञा

  • देह धिपबाक रोग, बोखार

Noun

  • fever.

ज्वर के अँग्रेज़ी अर्थ

Noun, Masculine

  • fever, pyrexia

ज्वर के हिंदी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • शरीर की वह गरमी या ताप जो स्वाभाविक से अधिक हो और शरीर की अवस्थता प्रकट करे । ताप । बुखार ।

    विशेष
    . सुश्रुत, चरक आदि ग्रंथों में ज्वर सब रोगों का राजा और आठ प्रकार का माना गया है—वातज, पित्तज, कफज, वात- पित्तज, वातकफज, पित्तकफज, सान्निपातिक और आगतुज । आगंतुज ज्वर वह है जो चोट लगने, विष खाने आदि के कारण हो जाता है , इन सब ज्वरों के लक्षण और आचार भिन्न भिन्न हैं , ज्वर से उठे हुए, कृश या मिथ्या आहार विहार करनेवाले मनुष्य का शेष या रहा सहा दोष जब वायु के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होकर आमाशय, हृदय, कंठ, सिर और संधि इन पाँच कफ स्थानों का आश्रय लेता है तब उससे अँतरा, तिजरा और चौथिया आदि विषम ज्वर उत्पन्न होते हैं , प्रलेपक ज्वर से शरीरस्थ धातु सूख जाती है , जब कई एक दोष कफ स्थान का आश्रय लेते हैं तब विपर्यज नाम का विषम ज्वर उत्पन्न होता है , विपर्यय ज्वर वह है जो एक दिन न आकर दो दिन बराबर आवे , इसी प्रकार आगंतुक ज्वर के भी कारणों के अनुसार कई भेद किए गए हैं , जैसे, कामज्वर, क्रोधज्वर, भयज्वर इत्यादि , ज्वर अपने आरंभ दिन से सात दिनों तक तरुण, १४ दिनों तक मध्यम २१ दिनों तक प्राचीन और २१ दिनों के उपरांत जीर्णज्वर कहलाता है , जिस ज्वर का वेग अत्यंत अधिक हो, जिससे शरीर की कांति बिगड़ जाय, शरीर शिथिल हो जाय, नाड़ी जल्दी न मिले उसे कालज्वर कहते हैं , वैद्यक में गुड़च, चिरायता, पिप्पली, नीम आदि कटु वस्तुएँ ज्वर को दूर करने के लिये दी जाती हैं पाश्चात्य मत के अनुसार मनुष्य के शरीर में स्वाभाविक गरमी ९८ और ९९ के बीच होती है । शरीर में गरमी उत्पन्न होते रहने और निकलते रहने का ऐसा हिसाब है कि इस मात्रा की उष्णता शरीर में बराबर बनी रहती है । ज्वर की अवस्था में शरीर में इतनी गरमी उत्पन्न होती है जितनी निकलने नहीं पाती । यदि गरमी बहुत तेजी से बढ़ने लगती है तो रक्त त्वचा से हटने लगता है जिसके कारण जाड़ा लगता है और शरीर में कँपकँपी होती । ज्वर में यद्यपि स्वस्थ दशा की अपेक्षा गरमी अधिक उत्पन्न होती है पर उतनी ही गरमी यदि स्वस्थ शरीर में उत्पन्न हो तो वह बिना किसी प्रकार का अधिक ताप उत्पन्न किए उसे निकाल सकता है । अस्वस्थ शरीर में गरमी निकालने की शक्ति उतनी नहीं रह जाती, क्योंकि शरीर की धातुओं का जो क्षय होता है वह पूर्ति की अपेक्षा अधिक होता है । ज्वर में शरीर क्षीण होने लगता है, पेशाब अधिक आता है, नाड़ी और श्वास जल्दी जल्दी चलने लगता है, प्रायः कोष्ठबद्ध भी हो जाता है, प्यास अधिक लगती है, भूख कम हो जाती है, सिर में दर्द तथा अंगों में विलक्षण पीड़ा होती है । विषैले कीटाणुपों के शरीर में प्रवेश और वृद्धि, अंगों की सूजन, धूप आदि के ताप तथा कभी कभी नाड़ियों या स्नायुओं की अव्यवस्था से भी ज्वर उत्पन्न होता है । ज्वर के संबंध में हरिवंश में एक कथा लिखी है । जब कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध बाणासुर के यहाँ बंदी हो गए तब कृष्ण और बाणासुर में धोर संग्राम हुआ था । उसी अवसर पर बाणासुर की सहायता के लिये शिव ने ज्वर उत्पन्न किया । जब ज्वर ने बलराम आदि को गिरा दिया और कृष्ण के शरीर में प्रवेश किया तब कृष्ण ने भी एक वैष्णव ज्वर उत्पन्न किया जिसने माहेश्वर ज्वर को निकालकर बाहर किया । माहेश्वर ज्वर के बहुत प्रार्थना करने पर कृष्ण ने वैष्णव ज्वर समेट लिया और माहेश्वर ज्वर को ही पृथ्वी पर रहने दिया । दूसरी कथा यह है कि दक्ष प्रजापति के अपमान से कुद्ध होकर महादेव जी ने अपने श्वास से ज्वर को उत्पन्न किया ।

  • (लाक्षणिक-अर्थ) ऐसी स्थिति जिसमें मानसिक अंशाति, उत्तेजना और आवेग हो, मानसिक क्लेश , दुःख , शोक

ज्वर के पर्यायवाची शब्द

संपूर्ण देखिए

ज्वर से संबंधित मुहावरे

ज्वर के कन्नौजी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • ताप, बुखार
  • मानसिक कष्ट

ज्वर के ब्रज अर्थ

पुल्लिंग

  • ताप , बुखार

अन्य भारतीय भाषाओं में ज्वर के समान शब्द

उर्दू अर्थ :

बुख़ार - بخار

पंजाबी अर्थ :

बुखार - ਬੁਖਾਰ

गुजराती अर्थ :

ताव - તાવ

कोंकणी अर्थ :

ज़ोर

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