कला

कला के अर्थ :

कला के मैथिली अर्थ

संज्ञा

  • हृदयग्राही शिल्पकर्म
  • कौशल, ढङ्ग, लूरि
  • अंश, विशेषतः 16 म, 60 म आ 90 म
  • चन्द्रबिम्बक सोलहम भाग

Noun

  • art.
  • skill.
  • degree, minute, phase of moon.
  • digit of moon.

कला के अँग्रेज़ी अर्थ

Noun, Feminine

  • art, craft, skill
  • a portion, division
  • a digit or one sixteenth of the moon's diameter
  • sport, play
  • degree
  • very minute division of time

कला के हिंदी अर्थ

संस्कृत ; संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • नकलबाजी
  • अंश , भाग
  • बहानेबाजी

    उदाहरण
    . पुनि सिंगार करु कला नेवारी । कदम सेवती बैठु पियारी ।

  • चंद्रमा का सोलहवाँ भाग, इन सोलहों कलाओं के नाम ये हैं —1. अमृता 2. मानदा 3. पूषा 4. पुष्टि 5. तुष्टि 6.रति 7. धृति 8. शशनी 9. चंद्रिका 10. कांति 11. ज्योत्स्ना 12. श्री 13. प्रीति 14. अंगदा 15. पूर्णा और 16. पूर्णामृता

    विशेष
    . पुराणों में लिखा है कि चंद्रमा में अमृता है जिसे देवता लोग पीते हैं। चंद्रमा शुक्ल पक्ष में कला-कला करके बढ़ता है और पूर्णिमा के दिन उसकी सोलहवीं कला पूर्ण हो जाती है। कृष्णपक्ष में उसके संचित अमृत को कला-कला करके देवतागण इस भाँति पी जाते हैं।—पहली कला को अग्नि, दूसरी कला को सूर्य, तीसरी कला को विश्वेदेवा, चौथी को वरुण, पाँचवीं को वषट्कार, छठी को इंद्र, सातवीं को देवर्षि, आठवीं को अजएकपात्, नवीं को यम, दसवीं को वायु, ग्यारहवीं को उमा, बारहवीं को पितृगण, तेरहवीं को कुबेर, चौदहवीं को पशुपति, पंद्रहवीं को प्रजापति और सोलहवीं कला अमावस्या के दिन जल और औषधियों में प्रवेश कर जाती है जिनके खाने-पीने से पशुओं में दूध होता है। दूध से घी होता है। यह घी आहुति द्वारा पुनः चंद्रमा तक पहुँचता है।

  • सूर्य का बारहवाँ भाग

    विशेष
    . वर्ष की बारह संक्रांतियों के विचार से सूर्य के बारह नाम हैं, अर्थात्—१

  • विवस्वान,
  • अर्यमा,
  • तूषा,
  • त्वष्टा,
  • सविता,
  • भग,
  • धाता,
  • विधाता, ९
  • वरुण,
  • मित्र,
  • शुक्र और
  • उरुक्रम , इनके तेज को कला कहते हैं बारह कलाओं के नाम ये हैं—
  • तपिनि,
  • तापिनी,
  • धूम्रा,
  • मरीचि,
  • ज्वालिनी,
  • रुचि,
  • सुषुम्णा,
  • भोगदा, ९
  • विश्वा,
  • बोधिनी,
  • धारि णी और
  • क्षमा
  • अग्निमंडल के दस भागों में से एक

    विशेष
    . उसके दस भागों के नाम ये हैं—१

  • धूम्रा,
  • अर्चि,
  • उष्मा,
  • ज्वलिनी,
  • ज्वालिनी,
  • विस्फुल्लिंगिनी,
  • सुरूपा, ९
  • कपिला और १० हव्यकव्यवहा
  • समय का एक विभाग जो तीस काष्ठा का होता है

    विशेष
    . किसी के मत से दिन का १/६०० वाँ भाग और किसी के मत से १/१८०० वाँ भाग होता है । ६

  • राशि के ३०वें अंश का ६०वाँ भाग
  • वृत्त का १८००वाँ भाग
  • राशिचक्र के एक अंश का ६०वाँ भाग ९
  • उपनिषदों के अनुसार पुरुष की देह के १३ अंश या उपाधि

    विशेष
    . इनके नाम इस प्रकार हैं—१

  • प्राण,
  • श्रद्धा,
  • व्योम,
  • वायु,
  • तेज,
  • जल,
  • पृथ्वी,
  • इंद्रिय, ९
  • मन
  • अन्न,
  • वीर्य,
  • तप,
  • मंत्र,
  • कर्म,
  • लोक और
  • नाम
  • छंदशास्त्र या पिंगल में 'मात्रा' या 'कला'
  • चिकित्सा शास्त्र के अनुसार शरीर की सात विशेष झिल्लियों के नाम जो मांस, रक्त, मेद, कफ, मूत्र, पित्त और वीर्य को अलग अलग रखती हैं
  • किसी कार्य को भली भाँति करने का कौशल , किसी काम को नियम और व्यवस्था के अनुसार करने की विद्या , फन , हुनर

    विशेष
    . कामशास्त्र के अनुसार ६४ कलाएँ ये हैं ।—(१) गीत (गाना), (२) वाद्य (बाजा बाजाना), (३) नृत्य (नाचना), । (४) नाट्य (नाटक करना, अभिनय करना), (५) आलेख्य (चित्रकारी करना), (६) विशेषकच्छेद्य (तिलक के साँचे बनाना), (७) तंड्डल-कुसुमावलि-विकार (चावलों और फूलों का चौक पूरना), (८) पुष्पास्तरण (फूलों की सेज रचना या बिछाना), (९) दशन-वसनांग राग (दातों, कपड़ों और अंगों को रँगना या दाँतों के लिये मंजन, मिस्सी आदि, वस्त्रों के लिये रंग और रँगने की सामग्री तथा अंगों में लगाने के लिये चंदन, केसर, मेहँदी, महावर आदि बनाना और उनके बनाने की विधि का ज्ञान), (१०) मणिभूमिकाकर्म (ऋतु के अनुकूल घर सजाना), (११) शयनरचना (बिछावन या पलग बिछाना), (१२) उदकवाद्य (जलतरंग बजाना), १३

  • उदकघात (पानी ते छीटे आदि मारने या पिचकारी चलाने और गुलाबपास से काम लेने की विद्या), (१४) चित्रयोग (अवस्थापरिवर्तन करना अर्थात् नपुंसक करना, जवान को बुड्ढा और बुड्ढे को जवान करना इत्यादि), (१५) माल्य- ग्रंथविकल्प (देवपूजन के लिये या पहनने के लिये माला गूँथना), (१६) केश-शेख रापीड़-योजन (सिर पर फूलों से अनेक प्रकार की रचना करना या सिर के बालों में फूल लगाकर गूँथना), (१७) नेपथ्ययोग (देश काल के अनुसार वस्त्र, आभूषण आदि पहनना, (१८) कणँपत्रभँग (कानों के लिये कर्णफूल आदि आभूषण बनाना), (१९) गंधयुक्त पदार्थ जैसे गुलाब, केवड़ा, इत्र, फुलेल आदि बनाना, (२०) भूषणभोजन, (२१) इंद्रजाल, (२२) कौचुमारयोगो (कुरूप को सुंदर करना या मुँह में और शरीर में मलने आदि के लिये ऐसे उबटन आदि बनाना जिनसे कुरूप भी सुंदर हो जाय), (२३) हस्तलाघव (हाथ की सफाई, फुर्ती या लाग), (२४) चित्रशाकापूपभक्ष्य-विकार-क्रिया (अनेक प्रकार की तरकारियाँ, पूप और खाने के पकवान बनाना, सूपकर्म), (२५) पानकरसरागासव भोजन (पीने के लिये अनेक प्रकार के शर्बत, अर्क और शराब आदि बनाना), (२६) सूचीकर्म (सीना, पिरोना), (२७) सूत्रकर्म (रफगूरी और कसीदा काढ़ना तथा तागे से तरह तरह के बेल बूटे बनाना), (२८) प्रहेलिका (पहेली या बुझौवल कहना और बूझना), (२९) प्रतिमाला (अंत्याक्षरी अर्थात् श्लोक का अंतिम अक्षर लेकर उसी अक्षर से आरंभ होनेवाला दूसरा श्लोक कहना, बैतबाजी), (३०) दुर्वाचकयोग (कठिन पदों या शब्दों का तात्पर्य निकालना), (३१) पुस्तकवाचन (उपयुक्त रीति से पुस्तक पढ़ना), (३२) नाटिकाख्यायिकादर्शन (नाटक देखना या दिखलाना), (३३) काव्यसमस्या— पूर्ति, (३४) पट्टिका—वेत्र—बाण, विकल्प, (नेवाड़, बाध या बेंत से चारपाई आदि बुनना), (३५) तर्ककर्म (दलील करना या हेतुवाद), (३६) तक्षण (बढ़ई, संगतराश आदि का काम करना), (३७) वास्तुविद्या (घर बनाना, इंजीनियरी), (३८) रूप्यरत्नपरीक्षा (सोने, चाँदि धातुओं और रत्नों को परखना), (३९) धातुवाद (कच्ची धातुओ का साफ करना या मिली धातुओं को अलग अलग करना), (४०) माणि राग—ज्ञान (रत्नों के रंगो को जानना), (४१) आकरज्ञान (खानों की विद्या), (४) वृक्षायुर्वेदयोग (वृक्षों का ज्ञान, चिकित्सा और उन्हें रोपने आदि की विधि), (३४) मेष- कुक्कुट—लावक—युद्ध—विधि, (भेड़े, मुर्गे, बटर, बुलबुल आदि को लड़ाने की विधि), (४४) शुक—सारका—प्रलापन (तोता, मैना पढ़ाना), (४५) उत्सादन (उबटन लगाना और हाथ, पैर, सिर आदि दबाना), (४६) केश—मार्जन—कौशल (बालों का मलना और तेल लगाना), (४७) अक्षरमुष्टिका कथन (करपलई), (४८) म्लेच्छितकला विकल्प (म्लच्छ या विदेशी भाषाओं का जानना), (४९) देशभाषाज्ञान (प्राकृतिक बोलियों को जानना), (५०)पुष्पशकटिकानिमि- त्तज्ञान (देवी लक्षण जैसे बादल की गर��, बिजली की चमक इत्यादि देखकर आगामी घटना के लिये भविष्यद्वाणी करना), (५१) यत्रमातृका (यंत्रनिर्माण), (५२) धारण मातृका (स्मरण बढ़ना), (५३) सपाठ्य (दूसर को कुछ पढ़ते हुए सुनकर उसे उसी प्रकार पढ़ देना), (५४) मानसीकाव्य क्रिया (दूसरे का अभिप्राय समझकर उसके अनुसार तुरंत कविता करना या मन मे काव्य करके शीघ्र कहते जाना), (५५) क्रियाविकल्प (क्रिया के प्रभाव को पलटना), (५६) छलितकयोग (छल या ऐयारी करना), (५७) अभिधानकोष- छंदोज्ञान, (५८) वस्त्रगोपना (वस्त्रों की रक्षा करना), (५९) द्यूतविशेष (जुआ खेलना), (६०) आकर्षण क्रीड़ा (पासा आदि फेंकना), (६१) बालक्रीड़ाकर्म (लड़का खेलाना), (६२) वैनायिकी विद्या—ज्ञान (विनय और शिष्टाचार, इल्मे इख्लाक वौ आदाब), (६३) वैजयिकी विद्याज्ञान, (६४) वैतालिकी विद्याज्ञान
  • मनुष्य के शरीर के आध्यात्मिक विभाग

    विशेष
    . ये संख्या में १६ हैं । पाँच ज्ञानेंद्रिया, पाँच कर्मेंद्रियाँ, पाँच प्राण और मन या बुद्धी । १४

    उदाहरण
    . सजन साधि कला । बस कीन्ही मन पवन घर आयो ।

  • वृद्धि , सूद
  • नृत्य का एक भेद
  • नौका
  • जिह्वा
  • शिव १९
  • लेश , लगाव
  • वर्ण , अक्षर , (तंत्र)
  • मात्रा (छंद)
  • स्त्री का रज
  • पाशुपत दर्शन के अनुसार शरीर के अंग या अवयव

    विशेष
    . इनमें कला दो प्रकार की मानी गई हैं ।—एक कार्याख्या, दूसरी कारणाख्या । कार्याख्या कलाएँ दस हैं, पृथिव्यादि पाँच तत्व, और गंधादि उनके पाँच गुण । कारणाख्या १३ हैं—पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पाँच कर्मेंद्रियाँ तथा अध्यवसाय, अभिमान और संकल्प । २४

  • विभूति , तेज , जैसे, ईश्वर की अदभूत कला है

    उदाहरण
    . रामजानकी लषन में ज्यों ज्यों करिहो भाव । त्यों त्यों दरसैहै कला दिन दिन दून दुराव । . कासिहु से कला जाती, मथुरा मसीद होती, सिवाजी न होते तो सुनति होति सबकी ।

  • शोभा , छटा , प्रभा

    उदाहरण
    . लखन बतीसी कुल निरमला । बरनि न जाय रूप की कला ।

  • ज्योति , तेज

    उदाहरण
    . अब दस मास पूरि भई घरी । पद्मावति कन्या अवतरी । जानो सुरुज किरिन हुत गढ़ी । सूरज कला घाट, वह बढ़ी ।

  • कौतुक , खेल , लीला

    उदाहरण
    . यहि विधि करत कला विविध बसत अवधपुर माहिं । अवध प्रजानि उछाह नित, राम बाँह की छाहि ।

  • छल , कपट , धोखा , बहाना

    उदाहरण
    . यौ ही रच्यौ करैहैं कला कामिनी धनी ।

  • बहाना , मिस , हीला
  • ढंग , युक्ति , करतब , जैसे— तुम्हारी कोई कला यहाँ नहीं लगेगी

    उदाहरण
    . बिरहा कठिन काल कै कला ।

  • नटों की एक कसरत जिसमें खिलाड़ी सिर नीचे करके उलटता है , ढेकली

    उदाहरण
    . नाचौ घूँघट खोलि ज्ञान का ढोल बजाओ । देखै सब संसार कलाएँ उलटी खाओ । . कतहूँ नाद शब्द ही मला कतहूँ नाटक चेटक कला ।

  • यज्ञ के तीन अंगों में से कोई अंग , मंत्र, द्रव्य और श्रद्धा ये तीन यज्ञ के अंग या उसकी कला हैं
  • यंत्र , पेंच , जैसे, — पथरकला , दमकला
  • मरीचि ऋषि की स्त्री का नाम
  • विभीषण की बड़ी कन्या का नाम
  • जानकी की एक सखी का नाम
  • एक वर्णवृत का नाम

    विशेष
    . इसके प्रत्येक चरण में एक भगण और एक गुरु (ऽ।।ऽ) होता है । जैसे—भाग भरे ग्वाल खरे । पूर्ण कला । नंद लला । ३८

  • जैन दर्शन के अनुसार वह अचेतन द्रव्य जो चेतन के अधीन रहता है , पुद्गल , प्रकृति , यह दो प्रकार का है—कार्य और कारण

कला से संबंधित मुहावरे

कला के अंगिका अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • युक्ति, शिल्प, हुनर, गुण

कला के अवधी अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • चाल, चतुरता, चालाकी

कला के गढ़वाली अर्थ

कळा

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • पेट खराब होना या बदहजमी

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • युक्ति, हुनर, चित्रकारी, हस्तशिल्प, कृति, कारीगरी, जादू की सी तरकीब

Noun, Feminine

  • stomach disorder or indigestion.

Noun, Feminine

  • skill, juggling, tactics, a magical tactics, art, craft, creation.

कला के बुंदेली अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • चन्द्रमा की सोलह कलायें, शिल्प, कारीगरी, अंश, सूद, ब्याज, नटों का काम, चौंसठ कलायें, मल्ल युद्ध आदि

कला के ब्रज अर्थ

स्त्रीलिंग

  • अंश, भाग
  • चन्द्रमा का सोलहवाँ भाग ; सूर्य का बारहवां भाग ; अग्नि-मंडल के दस भागों में से एक ; विद्या , हुनर , कारीगरी; कामशास्त्र के आधार पर ६४ कलाएँ; शरीर की सात छिल्लियाँ, ८. विभूति , तेज , प्रभाव

    उदाहरण
    . कासीहू की कला गई मथुरा भसीत भई ।

  • 9. गुण , विशेषता

    उदाहरण
    . देखहु दुचंद कला कंद की कमाई सी।

  • १०. स्त्री का रज, ११. यंत्र, १२. कर्दम प्रजापति की एक कन्या जो मरीचि ऋषि को ब्याही थी, प्रजापति कश्यप इसी के पुत्र थे

स्त्रीलिंग

  • बहाना

    उदाहरण
    . भृग दृग नासा अधर तें कोटि कला करि जाति ।


सकर्मक क्रिया, सकर्मक

  • भूनना , अकोरना , मसाले लिपटाना

कला के मगही अर्थ

हिंदी ; संज्ञा

  • चातुरी, कौशल, काम करने में निपुणता; ललित अथवा वास्तु कला; शोभा; उपाय, जुगुत, ढंग; अंश, चन्द्रमा का सोलहवाँ भाग; अत्यन्त अल्प अवधि; हवा में कलाबाजी; छल, कपट

कला के मालवी अर्थ

  • कला कौशल, गाने बजाने की विद्या, पुरुषों की प्रतिभा, नट विद्या, हुनर

अन्य भारतीय भाषाओं में कला के समान शब्द

पंजाबी अर्थ :

कला - ਕਲਾ

गुजराती अर्थ :

कला, कळा - કલા, કળા

चंद्रनो सोळमो भाग - ચંદ્રનો સોળમો ભાગ

उर्दू अर्थ :

फ़न - فن

कला - کلا

कोंकणी अर्थ :

कला

चंद्रीम आनी सूर्या चो अंश

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