केतु

केतु के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत
  • अथवा - केत

केतु के ब्रज अर्थ

पुल्लिंग

  • ज्ञान ; दीप्ति ; ध्वजा , पताका ; बिना शिर का ग्रह ५ पुच्छल तारा

    उदाहरण
    . राहु केतु दोउ जोरि एक करि ।

केतु के अँग्रेज़ी अर्थ

Noun, Masculine

  • the descending node of moon, comet
  • a mythological demon whose head (Ra:hu) was severed by Lord Vishṇu and the torso was later known as केतु
  • a banner

केतु के हिंदी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • केवड़ा
  • वस्तुओं और विषयों की वह तथ्यपूर्ण, वास्तविक और संगत जानकारी जो अध्ययन, अनुभव, निरीक्षण, प्रयोग आदि के द्वारा मन या विवेक को होती है, ज्ञान
  • दीप्ति, प्रकाश, चमक
  • वह तिकोना या चौकोर कपड़ा आदि जिसका एक सिरा डंडे में लगा रहता है और जिसका व्यवहार सत्ता, संकेत या उत्सव आदि सूचित करने के लिए होता है, ध्वजा , पताका
  • दिखाई देने या समझ में आने वाला ऐसा लक्षण, जिससे कोई चीज़ पहचानी जा सके या किसी बात का कुछ प्रमाण मिले, निशान , चिह्न
  • पुराणानुसार एक राक्षस का कबंध, (ज्योतिष) नवग्रहों में से एक, जिसको छाया ग्रह कहा जाता है, वैज्ञानिक दृष्टि से यह काल्पनिक है

    विशेष
    . यह राक्षस समुद्रमंथन के समय देवताओं के साथ बैठकर अमृतपान कर गया था । इसलिये विष्णु भगवान् ने इसका सिर काट डाला । पर अमृत के प्रभाव से यह मरा नहीं और इसका सिर राहु और कबांध केतु हो गया । कहा है इसे सूर्य और चेद्रमा ही ने पहचाना था; इसीलिये यह अबतक ग्रहण के समय सूर्य और चंद्रमा को ग्रसता है । ६

  • एक प्रकार का तारा जिसके प्रकाश की पुँछ जिखाई देती है , यह पुच्छल तारा कहलाता है

    विशेष
    . इस प्रकार के अनेक तांरे हैं, जो कभी कभी रात को झाड़ की तरह भिन्न भिन्न आकार के दिखाई देते हैं । भारतीय ज्योतिषियों में इनकी संख्या के विषय में मतभेद है । कोई हजार, कोई १०१ कोई कुछ, कोई कुछ मानता है । नारदी जी का मत है कि केतु एक ही है और वही भिन्न भिन्न रूप का दिखाई पजता है । फलित में भिन्न भिन्न केतुओं के उदय का भिन्न भिन्न फल माना गया है । ज्योतिषियों का मत है कि केतु अपने उदयकाल ही में या उदय से पंद्रह दिन पीछे शुभ या अशुभ फल दिखाते हैं । आजकल के पाश्चात्य ज्योतिषियों ने दूरबीन द्वारा यह निश्चित किया है कि केतुओं की संख्या अनिश्चित है और वे भिन्न भिन्न पटलों में भिन्न भिन्न दीर्घवृत या परलयवृत्त कक्षाओं में भिन्न भिन्न वोगों सो घूमते हैं । इन कक्षाओं की दो नाभियों में सूर्य एक नाभि होता है । दीर्घवृत्तात्मक कक्षा होने से ये तारे जब रविनीच के या सूर्य के समीपवर्ती कक्षांश में होते हैं, तभी दिखाई पडते हैं । रविनीच के कक्षांश में आते ही ये तारे कुछ दिखाई पड़ने लगते हैं और पहले पहल प्रकाश के धब्बे की तरह दूरबीनों से दिखाई पडते हैं । ज्यो जेयों ये सूर्य के समीप आते जाते हैं इनकी केतुनाभि दिखाई पडने लगती है फिर क्रमशः स्पष्ट होती जाती है । पर कितने ही केतुओं की केतुनाभि नहीं दिखाई पड़ती । उनमें केतुनाभि है या नहीं, यह संदिग्ध है । इन तारों की केतुनाभि उनके आवरण में लिपटी हुई सूर्य से २ अश से ९० अंश तक में दिखाई पडती है । इन तारों के साथ प्रकाश की एक घड़ी लगी होती है जिसे केतुपुच्छ कहते हैं । इस केतुपुच्छ में स्वयं प्रकाश नहीं होता । यह स्वयं स्वच्छ पारदर्शी और वायुमय होता है जिसमें सूर्य के सान्निध्य से प्रकाश आ जाता है । यही कारण है कि पुच्छ की दूसरी ओर का छोटे से छोटा तारा तक दिखाई पड़ता है । सन् १६८२ ई॰ के पूर्व के ज्योतिषियों की यह धारणा ती कि पुच्छल तारे बिना ठीक ठिकाने के मनमाने घूमा करते हैं; न इनकी कोई नियत कक्षा है और न इनके घुमने का कोई नियम है । पर सन् १८६२ ई॰ में हेली साहब ने हिसाब लगाकर एक तारे के विषय में यह अच्छी तरह सिद्ध कर दिया कि वह बहेल्ले की तरह नहीं घूमता, बल्कि लगभग ७६ वर्ष के बाद दिखाई पड़ता है । इस तारे को हेली साहब का पुच्छल तारा या 'हेली केतु' कहते हैं । तब से ज्योतिषियों का ध्यान इन केतुओं की गति की ओर आकर्षित हुआ और अबतक कितने ही तारों की गति और कक्षा आदि का पुरा पता लग चुका है । ऐसे तारों को ज्योतिष में नियत- कालिक केतु कहते हैं । सबसे विलक्षण बात—जिसका पता सन् १८६२ ई�� में इटली के शेपरले नामक ज्योतिष ने लगाया—यह है कि कितने ही पुच्छल तारों की कक्षा और कितने ही उल्कापुंजो की कक्षा एक ही है । उसने इस बात को सिद्ध कर दिया कि १८६२ के केतु और सिंहगत उल्का, ये एक ही कक्षा में भ्रमण करते हैं । केतु को पुच्छलतारा, बढनी, झाडू आदि भी कहते हैं । ७

    उदाहरण
    . कह प्रभु हँसि तनि हृदय डेराहू । लूक न असनि केतु नहि राहू ।

  • नवग्रहों में से एक ग्रह , यद्यपि फलित में इसे ग्रह माना है तथापि सिद्धात ग्रंथों में चंद्रकक्ष और क्रांतिरेखा के अधःपात के बिंदु को केतु माना है

    विशेष
    . दे॰ 'पात' । ८

    उदाहरण
    . केतु को अशुभ ग्रह मानते हैं ।

  • प्रकाश किरण
  • प्रधान या विशिष्ट व्यक्ति
  • दिन का समय , दिन
  • आकार , रूप , आकृति
  • एक वामन या बौनी जाति
  • शत्रु , बैरी
  • एक प्रकार का रोग

केतु के पर्यायवाची शब्द

संपूर्ण देखिए

केतु के गढ़वाली अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • सौरमंडल का नवाँ ग्रह-राहु केतु, एक पौराणिक राक्षस; पुच्छल तारा, पताका

Noun, Masculine

  • ninth planet of solar system, a demon according to PURANAS, comet.

केतु के मैथिली अर्थ

संज्ञा

  • एक पौराणिक ग्रह
  • पताका

Noun

  • a mythical planet.
  • flag

केतु के मालवी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • ध्वजापताका, नौ ग्रहो मेंसे एक ग्रह।

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