kshayii meaning in braj
क्षयी के ब्रज अर्थ
विशेषण, पुल्लिंग
- नाश होने वाला, नाशशील
- क्षय का रोग, यक्ष्मा रोग
- क्षय का रोगी
- चंद्रमा
क्षयी के अँग्रेज़ी अर्थ
Adjective
- decadent, waning, dwindling
क्षयी के हिंदी अर्थ
विशेषण
- क्षय होने वाला, नष्ट होने वाला
- क्षय रोग से ग्रस्त, जिसे क्षय या यक्ष्मा रोग हो
- जिसका क्षय या नाश होने को हो
संज्ञा, पुल्लिंग
-
चंद्रमा
विशेष
. पुराणानुसार दक्ष के शाप से चंद्रमा को क्षय रोग हो गया था। इसी से उसे क्षयी कहते हैं।
संज्ञा, स्त्रीलिंग
-
एक प्रसिद्ध रोग, यक्ष्मा, राजयक्ष्मा, क्षय, तपेदिक
विशेष
. इस रोग में रोगी का फेफड़ा सड़ जाता है और सारा शरीर धीरे धीरे गल जाता है। इसमें रोगी का शरीर गरम रहता है, उसे खाँसी आती है और उसके मुँह से बहुत बदबूदार कफ निकलता है जिसमें रक्त का भी कुछ अंश रहता है। धीरे-धीरे रक्त की मात्रा बढ़ने लगती है और रोगी कभी-कभी रक्तवमन भी करता है। ऋग्वेद के एक सूक्त का नाम 'यक्ष्माघ्न' है, जिससे जाना जाता है कि वैदिक काल में इसका रोगी मंत्रों से झाड़ा जाता था। चरक ने इस रोग का कारण वेगावरोध, धातुक्षय, दुःसाहस और विषभक्षण आदि बतलाया है; और सुश्रुत के मत से इन कारणों के अतिरिक्त बहुत अधिक या बहुत कम भोजन करने से भी इस रोग की उत्पत्ति होती है। वैद्य लोग इसे महापातकों का फल समझते हैं और इसके रोगी की चिकित्सा करने के पहले उससे प्रयश्चित करा लेते हैं। मनु जी ने इसे पुरूषानुक्रमिक बतलाया है और इसके रोगी के विवाह आदि संबध का निषेध किया है। डॉक्टरी मत से इस रोग की तीन अवस्थाएँ होती हैं। आरंभिक अवस्था में रोगी को खूनी खाँसी आती है, थकावट मालूम होती है, नाड़ी तेज़ चलती है और कभी-कभी मुँह से कफ से साथ रक्त भी निकलता है। मध्यम अवस्था में खाँसी बढ़ जाती है, रात को ज्वर रहता है, अधिक पसीना होता है, शरीर में बल नहीं रह जाता, छाती और पसलियों में पीड़ा होती है, मुँह से कफ की पीली गाँठें निकलती हैं और दस्त आने लगता है। इस अवस्था के आरंभ में यदि चिकित्सा का ठीक प्रबंध हो जाय, तो रोगी बच सकता है। अंतिम अवस्था में रोगी का शरीर बिलकुल क्षीण हो जाता है और मुँह से अधिक रक्त निकलने लगता है। उस समय यह रोग बिल्कुल असाध्य हो जाता है। यदि अधिक प्रयत्न किया जाय, तो रोगी कुछ काल तक जी सकता है।
क्षयी के पर्यायवाची शब्द
संपूर्ण देखिएक्षयी के तुकांत शब्द
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