kunDlinii meaning in maithili

कुण्डलिनी

कुण्डलिनी के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

कुण्डलिनी के मैथिली अर्थ

संज्ञा

  • (योगशास्त्रमें), शरीरक भीतरक एक सर्पिणी

Noun

  • (in yoga) a mystic serpent coil.

कुण्डलिनी के अँग्रेज़ी अर्थ

Noun, Feminine

  • the serpent force of the hathyogi

कुण्डलिनी के हिंदी अर्थ

कुंडलिनी

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • तंत्र और उसके अनुयायी हठयोग के अनुसार एक कल्पित वस्तु जो मूलाधार में सुषुम्ना नाड़ी के नीचे मानी गई है

    विशेष
    . यह वहाँ साढ़े तीन कुंडली मारकर त्रिकोण के आकार में पड़ी सोती रहती है। योगी लोग इसी को जगाने के लिए अष्टांग योग का साधन करते हैं। अत्यंत योगाभ्यास करने से यह जागती है। जागने पर यह साँप की तरह अत्यंत चंचल होती है, एक जगह स्थिर नहीं रहती और सुषुम्ना नाड़ी में होती हुई मूलाधार से स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, अग्नि और मेरुशिखर होती हुई या उन्हें भेदती हुई ब्रह्मरंध्र सें सहस्रार चक्र में जाती है। ज्यों-ज्यों यह उपर चढ़ती जाती है त्यों-त्यों साधक में अलौकिक शक्तियों का विकास होता जाता है और उसके सांसारिक बंधन ढीले पड़ते जाते हैं। ऊपर के सहस्रार चक्र में उसे पकड़ कर योग बल से ठहरान और सदा के लिए उसे वहीं रोक रखना हठयोग के साधकों का परम पुरुषार्थ माना गया है। उनके मत से यही उनके मोक्ष का साधन है। किसी-किसी तंत्र का यह भी मत है कि कुंडलिनी नित्य जागती है और वह बीच के चक्रों को भेदतो हुई सहस्रार कमल में जाती है और वहाँ देवगण उसे अमृत से स्नान कराते हैं। उनका कथन है कि यह कुंडलिनी मनुष्यों के सोने की अवस्था में ऊपर चढ़ती है और जागने के समय अपने स्थान मूलाधार में चली जाती है।

  • जलेबी नाम की मिठाई, इमरती
  • गुड़ूची, गिलोय
  • शरीर में मूल शक्ति का सूक्ष्म अंग जो कुंडल के आकार में मूलाधार में सुषुम्ना नाड़ी के नीचे माना गया है

    उदाहरण
    . ऐसा माना जाता है कि कुंडलनी की शक्ति कुंडल पिंडों और ब्रह्मांड दोनों का आधार होती है ।

  • एक प्रकार की मिठाई जिसे तेल में छानकर बनाते हैं
  • एक बहुवर्षी,आरोही, औषधीय बेल जिसके पत्ते पान के पत्ते के समान होते हैं
  • जलेबी की तरह की एक प्रकार की मिठाई
  • नाभि के नीचे मूलाधार चक्र में स्थित वह शक्ति जिसे हठयोग में साधक जगाकर ब्रह्मरंध्र में लगाने का प्रयत्न करता है
  • शक्ति की अधिष्ठात्री दुर्गा का एक रूप
  • हठ योग में नाभि के पास मूलाधार के नीचे प्रायः सषप्त अवस्था में रहनेवाली वह शक्ति जिसे साधना में जाग्रत किया जाता है और जिसके ब्रह्मरन्ध्र में पहुंच जाने पर योगी मुक्त और अमर जीवन प्राप्त करता है

कुण्डलिनी के पर्यायवाची शब्द

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