madaalsaa meaning in hindi

मदालसा

  • स्रोत - संस्कृत

मदालसा के हिंदी अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • पुराणानुसार विश्वावसु गंधर्व की कन्या का नाम जिसे वज्रकेतु के पुत्र पातालकेतु दानव ने उठा ले जाकर पाताल में रखा था

    विशेष
    . मार्कडेय पुराण में कथा है कि राजा शत्रुजित् के पुत्र ऋतुध्वज यज्ञरक्षार्थ गालव जी के आश्रम में रहते थे । एक दिन शूकर रुपधारी पातालवेतु के अधिक उपद्रव करने पर इन्होंने उसका पीछा किया और उसे मारकर पाताल में गए । वहाँ उन्हें मदालप्ता मिली जिससे उन्होंने विवाह किया । थोडे दिनों बाद जब ऋतुध्वज अपने पिता की आज्ञा से पृथिवीपीपर्यटन करने निकले, तब उन्हें पातालकेतु का भाई तालकेतु मिला जो मूनि का रूप धारण कर तप कर रहा था । तालकेतु ने ऋतुध्वज से कहा कि में यज्ञ करना चाहता हैं, पर दक्षिणा देने के लिये मेरे पास द्रव्य नहीं है । यदि आप आपना हार मुझे दें, तो में जल में प्रवेश कर वरुण से धन प्राप्त कर यज्ञ करूँ । राजकुमार ने उसके माँगने पर अपना हार उसे दे दिया और उसके आश्रम में बैठकर उसके लोटने की प्रतीक्षा करने लगे । तालकेतु हार पहनकर जलाशय में घुसा और दूसरे मार्ग से निकलकर उनके पिता के पास पहुँचकर उनसे कहा कि राजकुमार यज्ञ की रक्षा कर रहे थे । राक्षसों से घोर युद्ध हुआ, जिसमें राक्षसों ने राजकुमार को मार डाला । में यह समाचार देने के लिये आया हूँ । जब ऋतुध्वज के मारे जाने का समाचार मदालसा को पहुँचा, तब उसने प्राण त्याग दिए । तालध्वज वहाँ से लोटा और उसी जलाशय से निकलकर ऋतुध्वज से बोला कि आपकी कृपा से मेरा मनोरथ पूर्ण हो गया । अब आप अपने घर जाइए । ऋतुध्वज जब अपने घर आया, तो मदालसा के शरीरपात का समाचार सुनकर अत्यंत दुःखित हूआ । निदान वह सदा चिंतातुर रहा करता था । उसे शोकातुर देख उसके सखा नागराज अश्वतर के दो पूत्रों ने अपने पिता से प्रार्थना की कि आप तप करके मदालसा की फिर राजा को दें और उनको दुःख से छुडावें । अश्वतर ने शिव की तपस्या कर उनके वरदान से 'मदालसा' तुल्य पुत्री प्राप्त की और राज- कुमार ऋतुध्वज को अपने यहाँ निमंत्रित कर उसे प्रदान किया । यह मदालसा परम विदुषी और ब्रह्मवादिनी थी । यह अपने पुत्रों को ब्रह्मज्ञान का उपदेश करती हुई खेलाया करती थी । इसके तीन पुत्र विक्रांत, सुबाहु और शत्रुमदंन आबाल ब्रह्मचारी और विरक्त थे; और चौथा पुत्र अलकं गद्दी पर बैठा, जिसे राजा ऋतुध्वज ने अपना उत्तराधिकारी बनाया और अंत की उसी पर राज्यभार छोड़ सस्त्रोक वानप्रस्थाश्रम ग्रहण किया । मार्कडेय पुराण में इसकी कथा विस्तार से आई है।

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