नाड़ी

नाड़ी के अर्थ :

नाड़ी के मैथिली अर्थ

संज्ञा

  • शीररक रक्तवाही शिरा

Noun

  • pulse.

नाड़ी के हिंदी अर्थ

संस्कृत ; संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • नली
  • साधारणतः शरीर के भीतर की वे नलियाँ जिनमें होकर रक्त बहता है, विशेषतः वे जिनमें हृदय से शुद्ध रक्त क्षण क्षण पर जाता रहता है , धमनी

    विशेष
    . नाड़ी का उछलना प्राण रहने का चिह्न समझा जाता है और उसके अनूसार रोगी की दशा का भी पंता लगाया जाता है । . वे नलियाँ, जिनसे शरीर भर में रक्त का प्रवाह होता है, दो प्रकार की होती हैं— एक वे जो शुद्ध रक्त को हृदय से लेकर और सब अंगों को पहुँचाती है, दूसरी वे जो सब अंगों से अशुद्ध रक्त को इकट्ठा करके उसको हृदय में प्राणवायु के द्वारा शुद्ध होने के लिये लौटाकर ले जाती हैं । पहले प्रकार की नलियाँ ही विशेषतः नाड़ियाँ कहलाती हैं । क्योंकि स्पंदन अधिकतर उन्हीं में होता है । अशुद्ध रक्त को हृदय में पहुँचानेवाली नलियों या शिराओं में प्रायः स्पंदन नहीं होता । अशुद्ध रक्तवाहिनी शिराओं के द्वारा अशुद्ध रक्त हृदय के दाहिने कोठे में पहुँचता है, वहाँ से फिर वह फुफ्फुस में जाता हैं, फुफ्फुस में वह शुद्ध होता है । शुद्ध होने पर वह फिर हृदय के बाएँ कोठे में पहुँचता है । हृदय का क्षण-क्षण पर आकुंचन और प्रसारण होता रहता है—वह बराबर सिकुडता और फैलता रहता है । हृदय जिस क्षण सिकुड़ता है उसमें भरा हुआ रक्त वृहन्नाड़ी के खुले मुंह में क्षिप्त होता है और फिर बड़ी नाड़ी से उसकी शाखा प्रशाखाओं में पहुँचता है । सबसे पतली नाड़ियाँ इतनी सूक्ष्म होती हैं कि सूक्ष्मदर्शक यंत्र के बिना नहीं देखी जा सकतीं । नाड़ियाँ अधिकतर मांस और पीले तंतुओं की बनी हुई होती हैं । अतः इनमें लचीलापन होता है— ये खींचने से बढ़ जाती हैं । अधिक भर जाने अर्थात भीतर से जोर पड़ने पर ये फैलकर चौड़ी हो जाती है और जोर हटने पर फिर ज्यों की त्यों हो जाती हैं । हृदय का बायाँ कोठा सिकुड़कर बंड़े वेग के साथ १ १/२ छँटाक रक्त बड़ी नाड़ी में ढकेलत हैं । नाड़ियों में तो हर समय रक्त भरा रहता है, अतः जब बड़ी नाड़ी में यह डेढ़ छटाँक रक्त पहुँचता है तब हृदय के समीप का भाग बढ़कर फैल जाता है । फिर जब रक्त का दूसरा झोंका हृदय से आता है तब उसके आगे का भाग फैलता है । इसी आकुंचन प्रसारण के कारण नाड़ियों में स्पंदन या गति होती है । यह स्पंदन बड़ी नाड़ियों में ही मालूम होता है, छोटी छोटी नलियों में नहीं; क्योंकि अत्यंत सूक्ष्म नाड़ियों में पहुँचते पहूँचते लहरों का वेग बहुत कम हो जाता है — और फिर जब शिराओं में यही रक्त अशुद्ध होकर पलटता है तब लहर रह ही नहीं जाती । जब कोई नाड़ी कट जाती है तब उसमें से रक्त उछल उछलकर निकलता है; जब कोई अशुद्ध रक्तवाहिनी शिरा कटती है तब उसमें से रक्त धीरे धीरे निकलता है । नाड़ियों के भीतर का रक्त लाल होता है पर अशुद्ध रक्तवाहिनी शिराओं के भीतर का रक्त कालापन लिए होता है । . नाड़ी दिखाना या धराना = रोग के निदान के लिये वैद्य से नाड़ीपरीक्षा कराना । नब्ज दिखाना । . नाड़ी छूट जाना = (१) नाड़ी का न चलना । दबाकर छूने से नाड़ी मे गति न मालूम होना । (२) प्राण न रह जाना । मृत्यु हो जाना । (३) संज्ञा न रहना । मूर्छा आना । बेहोशी आना । . नाड़ी न बोलना = (१) नाड़ी न चलना । नाड़ी में गति न मालूम होना । (२) प्राण न रहना । (३) मूर्छा आना । बेहोशी आना । . नाड़ी देखना = कलाई की नाड़ी दबाकर रोगी की अवस्था का पता लगाना । नाड़ीपरीक्षा करके रोगी का निदान करना । . नाड़ी धरना या पकड़ना = दे॰ 'नाड़ी देखना' ।

  • हठयोग के अनुसार ज्ञानवाहिनी, शक्तिवाहिनी और श्वास- प्रश्वास-वाहिनी नलियाँ

    विशेष
    . योगियों का कहना है कि मेरुदंड या रीढ़ के एक इस तरफ और एक उस तरफ ऐसी दो नालियाँ हैं । इनमें जो बाई और है उसे इला या इड़ा और जो दाहिनी ओर हैं उसे पिंगला कहते हैं । इन दोनों के बीच में सुपुम्ना नाम की नाड़ी हैं । स्वरोदय तथा तंत्र के अनुसार बाएँ नथुने से जो साँस आती जाती है वह इड़ा नाड़ी से होकर और दाहिनै नथुने से जो निकलती है वह पिंगला से होकर । यदि श्वास कुछ क्षण बाएँ और कुछ क्षण दहिने नथुने से निकले तो समझना चाहिए कि वह सुपुम्ना नाड़ी से आ रहा है । श्वास की गति के अनुसार स्वरोदय में शुभाशुभ फल भी कहे गए हैं । इड़ा नाड़ी में चंद्र की अवस्थिति रहती है और पिंगला में सूर्य की । अतः इड़ा का गुण शीत और पिंगला का उष्ण है । सुषुम्ना नाड़ी त्रिगुणमयी और चंद्रसूर्याग्नि स्वरुपा है । यह नाड़ी ब्रह्मस्वरुपा है, इसी में जगत् प्रतिष्ठित है । बिना इन नाड़ियों के ज्ञान के योगा- भ्यास में सिद्धि नहीं प्राप्त हो सकती । जो योगाभ्यास करना चाहते हैं वे पहले इड़ा, फिर पिंगला और फिर सुषुम्ना को लेकर चलते हैं । सुषुम्ना के सबसे नीचे के भाग को योगी कुंडलिनी मानते हैं जिसे जगाने का यत्न वे करते हैं । सच पूछिए तो उसी को जगाने के लिये ही योग का अभ्यास किया जाता है । जाग्रत होनेपर कुंडलिनी चंचल होकर सुषुम्ना नाड़ी के भीतर भीतर सिर की और चढने लगती है और बारह चक्रों को पार करती हुई ब्रह्मरंध्र तक चली जाती है । जैसे जैसे वह ऊपर की ओर चढ़ती जाती है, योगी के सांसारिक बधन ढीले पड़ते जाते हैं और अलौकिक शक्तियाँ उसे प्राप्त होती जाती हैं, यहाँ ���क कि मन और शरीर से उसका संबंध छूत जाता है और वह परमानंद में मग्न होकर परमात्मा का शुद्ध रुप देखने लगता है ।

  • ब्रणरंध्र , नासूर का छेद
  • बंदूक की नली
  • काल का एक मान जो छह क्षण का होता है
  • गंडदूर्वा
  • वंशपत्री
  • किसी तृण का पोला डंठल
  • छद्य , कपट , मक्कारी
  • वर वधू की गणना बैठाने में कल्पित चक्रों में स्थित नक्षत्रसमूह , दे॰ 'नाड़ीनक्षत्र'
  • मृणाल, पद्यदड (को॰)
  • घड़ी (को॰)
  • फुँककर ब्याजा जानेवाला (वंशी आदि) वाद्य (को॰)
  • चमड़े की नली (को॰)
  • बुनकरों का एक औजार (को॰)

नाड़ी के पर्यायवाची शब्द

संपूर्ण देखिए

नाड़ी से संबंधित मुहावरे

नाड़ी के अंगिका अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • 'देखें' नाडी, देह, स्थित शिरा, रक्त वाहिनी, नालिया

नाड़ी के कन्नौजी अर्थ

संस्कृत ; संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • नली, पोला डंठल. 2. शरीर की रक्तवाहिनी शिरा

नाड़ी के गढ़वाली अर्थ

  • टांग की हड्डी
  • पंगु होना

  • नाड़ी, स्नायु

  • ज्योतिष के अन्तर्गत कुण्डली में अशुभ योग

  • bone of the leg.

  • pulse,vein.

  • presence of inauspicious planets in the horoscope.

नाड़ी के मगही अर्थ

हिंदी ; संज्ञा

  • धमनी, शरीर के अंदर की पतली नलियाँ जिससे रक्त संचालन होता है

नाड़ी के मालवी अर्थ

नाड़ी

संज्ञा, पुल्लिंग, स्त्रीलिंग

  • नाड़ी, धमनी, फीता, चढ़स खींचने की मोटी नाडी या रस्सी।

संज्ञा, पुल्लिंग, स्त्रीलिंग

  • विधवा स्त्री को फिर से नाता जोड़कर अपने घर में सम्मान सहित बिठा लेने की रस्म, इसमें उसके माता पिताभाई की सहमति भी होती है। नात्रा प्रायः रात्रि को ही लाया जाता है और यह रिवाज अपेक्षाकृत मालवा की पिछड़ी जातियों में प्रचलित है। पुनर्विवाह का एक पारम्परिक मा

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