raag meaning in angika
राग के अंगिका अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- अनुराग, मोह, प्रीति, प्रेम, ईर्ष्या, द्वेश, सुगन्धित लेप जहो शरीर में लगाया जाता है
राग के हिंदी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
-
किसी इष्ट वस्तु या सुख आदि को प्राप्त करने की इच्छा , प्रिय या आभमत वस्तु का प्राप्त करने की आभिलापा , प्रिय या सुखद वस्तु की ओर आकर्षण या प्रवृत्ति , सांसारिक सुखों की चाह
विशेष
. पतंजलि ने इसे पाँच प्रकार के क्लेशों में से एक प्रकार का क्लेश माना है । उनके मत से जो व्यक्ति सुख भोगता है, उसकी प्रवृत्ति और अधिक सुख प्राप्त करने की ओर होती हे; और इसी प्रवृति का नाम उन्होंने राग रखा हे । इसका मूल आवेद्या ओर परिणाम क्लेश है । - क्लेश , कष्ट , पीड़ा , तकलीफ
- मत्सर , ईर्ष्या , द्वेष
-
अनुराग , प्रेम , प्रीति
उदाहरण
. सो जन जगत जहाज है, जाके राग न द्वेष । -
चंदन, कपूर, कस्तूरी आदि से बना हुआ अंग में लगाने का सुगंधित लेप , अंगराग
उदाहरण
. कौन करै होरी कोई गोरी समुझावै कहा, नागरी को राग लाग्यो विष सो बिराग सों । कहर सी केसर कपूर लाग्यो काल सम गाज सो गुलाब लाग्यो अरगजा आग सो । - एक वर्णवृत जिसके प्रत्येक चरण में १३ अक्षर (र, ज, र, ज और ग) होते हैं
- रंग, विशेषतः लाल रंग , जैसे,—लाख आदि का
- मन प्रसन्न करने की क्रिया , रंजन ९
- राजा
- सूर्य
- चंद्रमा
- पैर में लगाने का अलता
-
संगीत में पड़ज आदि स्वरों, उनके वर्णों और अंगों से युक्त वह ध्वनि जो किसी विशिष्ट ताल में बैठाई हुई हो ओर जो मनोरंजन के लिये गाई जाती हो , किसी खास धुन में वैठाए हुए स्वर जिनके उच्चारण से गान होता हो
विशेष
. संगीत शास्त्र के भारतीय आचार्यों ने छह् राग माने है; परतु इन रागों के नामों के संबंध में बहुत मतभेद है । भरत और हनुमत के मत से ये छह राग इस प्रकार हैं—भैरव, कौशिक (मालकोस), हिंडेल, दीपक, श्री ओर मेघ । सोमेश्वर ओर ब्रह्मा के मत से इन छह रागों के नाम इस प्रकार हैं— श्री, वसंत, पंचम, भैरव, मेघ और नटनारायण । नारद- संहिता का मत है कि मालव, मल्लार, श्री, वसंत, हिंडोल और कर्णाट ये छह राग हैं । परंतु आजकाल प्रायः ब्रह्मा ओर सोमेश्वर का मत ही अधिक प्रचलित है । स्वरभेद से राग तीन प्रकार के कहे गए हैं—(१) संपूर्ण, जिसमें सातो स्वर लगते हों; (२) षाड़व, जिसमें केवल छह स्वर लगते हों और कोई एक स्वर वर्जित हो; और (३) ओड़व, जिसमे केवल पाँच स्वर लगते हों और दो स्वर वर्जित हों । मतंग के मत से रागों के ये तीन भेद हैं— (१) शुद्ध, जो शास्त्रीय नियम तथा विधान के अनुसार हो और दो जिसमें किसी दूसरे राग की छाया न हो; (२) सालंक या छायालग, जिसमें किसी दूसरे राग की छाया भी दिखाई देती हो, अथवा जो दो रागों के योग से बना हो; और (३) संकीर्ण, जो कई रागों के योग से बना हो । संकीर्ण को 'संकर राग' भी कहते हैं । ऊपर जिन छह रागों के नाम बतलाए गए हैं, उनमें से प्रत्येक राग का एक निश्चित सरगम या स्वरक्रम है; उसका एक विशिष्ट स्वरूप माना गया है; उसके लिये एक विशिष्ट ऋतु, समय और पहर आदि निश्चित है; उसके लिये कुछ रस नियत है; तथा अनेक ऐसी बातें भी कही गई है; जिनमें से अधिकांश केवल कल्पित ही हैं । जैसे, माना गया है कि अमुक राग का अमुक द्विप या वर्ष पर अधिकार है, उसका अधिपति अमुक ग्रह है, आदि । इसके अतिरिक्त भरत और हनुमत के मत से प्रत्येक राग की पाँच पाँच रागिनियाँ और सोमेश्वर आदि के मत से छह छह रागिनियाँ हैं । इस अंतिम मत के अनुसार प्रत्येक राग के आठ आठ पुत्र तथा आठ आठ पुत्रवधुएँ भी हैं (विशेष दे॰ 'रागिनी'-४) । यदि वास्तविक दृष्टि से देखा जाय् तो राग और रागिनी में कोई अंतर नही है । जो कुछ अंतर है, वह केवल कल्पित है । हाँ, रागों में रागिनियों की अपेक्षा कुछ विशेषता और प्रधानता अवश्य होती है और रागनियाँ उनकी छाया से युक्त जान पड़ती हैं । अतः हम रागनियो को रंगों के अवातर भेद कह सकते है । इसके सिवा और भी बहुत से राग हैं, जो कई रागो की छाया पर अथवा मेल से बनते हैं और 'संकर राग' कहजाते हैं । शुद्ध रागों की उत्पत्ति के संबंध में लोगों का विश्वास है कि जिस प्रकार श्रीकृष्ण की वंशी के सात छेदों में से स त स्वर निकले हैं, उसी प्रकार श्रीकृष्ण जी की १६०८ गोपिकाओं के गाने से १६०८ प्रकार के राग उत्पन्न हुए थे; और उन्हीं में से बचते बचते अंत में केवल छह राग और उनकी ३० या ३६ रागिनियाँ रह गईं । कुछ लोगों का यह भी मत है कि महादेव जी के पाँच मुखीं से पाँच राग (श्री, वसंत, भैरव, पंचम और मेघ) निकले हैं और पार्वती के मुख से छठा नटनारायण राग निकला है ।
राग के पर्यायवाची शब्द
संपूर्ण देखिएराग के यौगिक शब्द
संपूर्ण देखिएराग से संबंधित मुहावरे
राग के अवधी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- गीत का राग
राग के कन्नौजी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- गीत का राग
राग के कुमाउँनी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
-
हाथ से बुना हुआ सफेद ओवरकोट, मामला, बात, राग-रहस्य, द्वेष, संगीत का राग
उदाहरण
. 'राग गिडि गो' - बात बिगड़ गयी
राग के बघेली अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- जंघा एवं कमर के बीच का प्रक्षेत्र
राग के बुंदेली अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
-
स्वर लय युक्त गायन
उदाहरण
. प्र. हमाई तो उनने सुनी नँइँया और आनों राग अलापन लगे (व्यं.अ.) लगाव।
राग के ब्रज अर्थ
सकर्मक क्रिया, अकर्मक क्रिया, अकर्मक, सकर्मक
-
अनुरक्त होना
उदाहरण
. या अनुराग की फाग लखौ जहं रागती राग किसोर किसोरी । - क्रुद्ध होना ; निमग्न होना
- अलापना , गाना , स्वर निकालना
पुल्लिंग
-
अनुराग । लौकिक सुखों की कामना ; ईष्या ; चंदन कपूर आदि सुगंधित वस्तुओं से बनाया हुआ लेप विशेष ; संगीत को ध्वनि विशेष , लय ; महावर , पैर में लगाने का आलता; पीड़ा, कष्ट ; राजा, ८. चंद्रमा
उदाहरण
. केसर से अंग अंग राग कर केसर को ।
पुल्लिंग
- संगीत के छह राग अर्थात भैरव, मलार, श्रीराग, हिंडोला, मालकोश और दीपक ; आडंबर , ढोंग , झंझट
राग के मगही अर्थ
संज्ञा
- अनुराग, स्नेह; क्रोध; संगीत का कोई धुन; उबटन, अंगराग; देवी-देवता को अर्पित नैवेद्य, राग-भोग
राग के मैथिली अर्थ
संज्ञा
- द्वेष, तामस
- अनुराग, प्रेम
- भोग-तृष्णा, आसक्ति
- सङ्गीतमे विशेष प्रकारक स्वर-संयोजन, जेना मालकोस आदि, भास, धुनि
- रङ्ग
अकर्मक क्रिया
- तमसाएब
Noun
- anger, displeasure.
- attachment, affection, love.
- lust, passion.
- pattern of notes in classical music, tune.
- colour.
Intransitive verb
- be angry.
राग के मालवी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- प्रिय वस्तु के प्रति होने वाला मन का भाव या झुकाव, ईर्ष्या और द्वेष, प्रेम, अनुराग, मोह, अंगराग, रंग विशेषतः लाल रंग, महावर, संगीत में स्वरों के विशेष प्रकार और क्रम या निश्चित योजना से बना हुआ गीत का ढाँचा, भारतीय संगीत अनुसार छः राग।
अन्य भारतीय भाषाओं में राग के समान शब्द
पंजाबी अर्थ :
राग - ਰਾਗ
गुजराती अर्थ :
राग - રાગ
सूर - સૂર
उर्दू अर्थ :
राग - راگ
कोंकणी अर्थ :
मोग
प्रेम
संगीत
राग के तुकांत शब्द
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