साँझी

साँझी के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत
  • देखिए - साँजी

साँझी के हिंदी अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • देव मंदिरों में देवताओं के सामने ज़मीन पर की हुई फूल-पत्तों आदि की सजावट जो विशेषतः पितृपक्ष में सायंकाल के समय की जाती है, प्रायः सावन के महीने में शृंगार आदि के अवसर पर भी ऐसी सजावट होती है

    विशेष
    . प्रायः स्त्रियों में प्रचलित एक लोक-कला जिसमें त्योहारों आदि पर घरों और मंदिरों की भूमि या फर्श पर रंगीन चूर्णों, अनाज के दानों और भूसियों तथा फूल-पत्तियों से बेल-बूटों, पशु-पक्षियों या दूसरे पदार्थों की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। गुजरात में इसे सथिया, महाराष्ट्र में रंगोली, बंगाल में अल्पना तथा दक्षिण भारत में कोलं (कोलम्) कहते हैं।

साँझी के बुंदेली अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • भूमि पर रंग चूर्णों से सजाई जाने वाली झाँकी, साँजी

साँझी के ब्रज अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • श्रावण मास में मंदिरों में बनाई जाने वाली झाँकियाँ

साँझी के मालवी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग, स्त्रीलिंग

  • मंदिरों में भूमि पर रंगीन चूर्णों से बनाई गई बेल बूटों की सजावट, क्वाँर मास में कुमारी कन्याओं द्वारा बनाई जाने वाली सँजा की आकृतियाँ, मालवी कुमारिकाओं का व्रतोपवास, चित्रावण कला, एक लोकपर्व, इसे सँजासाँजा साँझीसाँजुलि आदि नामों से भी पुकारा जाता है। ब्र

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