सन्यास

सन्यास के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

सन्यास के हिंदी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • छोड़ना , दूर करना , त्याग
  • सांसारिक प्रपंचों के त्याग की वृत्ति , दुनिया के जंजाल से अलग होने की अवस्था , वैराग्य
  • चतुर्थ आश्रम , यति धर्म

    विशेष
    . यह प्राचीन भारतीय आर्यों या हिंदुओं के जीवन की चार अवस्थाओं में से अंतिम है जो पुत्र आदि के सयाने हो जाने पर ग्रहण की जाती थी । इसमें मुनुष्य गृहस्थी छोड़कर जंगल या एकांत स्थान में ब्रह्मचिंतन या परलोकसाधन में प्रवृत्त रहते थे और भिक्षा द्वारा निर्वाह करते थे । इसमें किसी आचार्य से दीक्षा लेकर सिर मुँड़ाते और दंड ग्रहण करते थे । संन्यास दो प्रकार का कहा गया है—एक सक्रम अर्थात् जो ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य और वानप्रस्थ आश्रम के उपरांत ग्रहण किया जाय; दूसरा अक्रम जो बीच में ही वैराग्य उत्पन्न होनेपर धारण किया जाय । बहुत दिनों तक 'संन्यास' कलिवर्ज्य माना जाता था; पर शंकराचार्य ने बौद्ध भिक्षुओं ओर जैन यतियों को अपने अपने धर्म का प्रचार बढ़ाते देख कलिकाल में फिर संन्यास चलाया और गिरि, पुरी, भारती आदि दस प्रकार के संन्यासियों की प्रतिष्ठा की जो दशनामी कहे जाते हैं ।

  • सहसा शरीर का त्याग , एकबारगी मरण
  • एकदम थक जाना , चरम शैथिल्य
  • धरोहर , थाती
  • वादा , इकरार
  • बाजी , होड़ , खेल में शर्त लगाना ९
  • जटामासी

सन्यास के बुंदेली अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • संसार से विरक्त होकर धर्माचरण की स्थिति

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