2.
पड़ना
एक स्थान से गिरकर, उछलकर अथवा और किसी प्रकार दूसरे स्थान पर पहुँचना या स्थित होना , कहीं से चलकर कहीं, प्राय: ऊँचे स्थान से नीचे आना , गिरना , पतित होना , जैसे,—जमीन पर पानी या ओला पड़ना, सिर पर पत्थर पड़ना, चिराग पर हाथ पड़ना, साँप पर निगाह पड़ना, कान में आवाज पड़ना, कुरते पर छींटा पड़ना, बिसात पर पासा पड़ना आदि , संयो॰ क्रि॰—जाना , विशेष—'गिरना' और पड़ना के अर्थो में यह अंतर है कि पहली क्रिया का विशेष लक्ष्य गति व्यापार पर और दूसरी का प्राप्ति या स्थिति पर होता है , अर्थात् पहली क्रिया वस्तु का किसी स्थान से चलना या रवाना होना और दूसरी क्रिया किसी स्थान पर पहुँचना या ठहरना सूचित करती है , जैसे— पहाड़ के पत्थर गिरना और सिर पर पत्थर पड़ना