varNmarkaTii meaning in hindi

वर्णमर्कटी

  • स्रोत - संस्कृत

वर्णमर्कटी के हिंदी अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • पिंगल या छंदः शास्त्र में एक क्रिया जिससे यह जाना जाता है कि इतने वर्गों के इतने वृत्त हो सकते हैं जिनमें इतने गुर्वादि, गुर्वंत, और इतने लघ्वादि, लघ्वत होंगे तथा इन सब वृत्तों में कुल मिलाकर इतने वर्ण, इतने गुरु-लघु, इतनी कलाएँ और इतने पिण्ड (= दो कल) होंगे

    विशेष
    . जितने वर्णं हों, उतने ख़ाने बाएँ से दाहिने बनाएँ। फिर उन ख़ानों के नीचे उतने ही ख़ानों की छह पंक्तियाँ और बनाएँ। कोष्ठों की पहली पंक्ति में 1, 2, 3,आदि अंक लिखें; दूसरी में वर्णसूची के अंक (2, 4, 5, 16,आदि) लिखें; तीसरी पंक्ति में दूसरी पंक्ति के अकों के आधे अंक भरें; चौथी में पहली और दूसरी पंक्ति के अंकों के गुणनफल लिखें; पाँचवीं में चौथी पंक्ति के आधे अंक भरें; छठी पंक्ति में चौथी और पाँचवीं पंक्ति के अंकों का योग लिखें; और सातवीं पंक्ति में छठी पंक्ति के आधे अंक भरें। उदाहरण के लिए छह वर्णों की मर्कटी इस प्रकार होगी। 123456 वर्णसंख्या 2 4 8 16 32 64 वृत्तों की संख्या 1 2 4 8 16 32 गुर्वादि, गुर्वंत, लघ्वादि, लघ्वंत 2 4 24 64 160 384 सर्व वर्ण 1 4 12 32 80 192 गुरु लघु 3 12 36 96 240 576 सर्व कला 11/26 18 48 120 288 पिंड इस मर्कटी से प्रकट हुआ कि 6 वर्णों के 64 वृत्त हो सकते हैं। 32 वृत्त ऐसे होंगे जिनके आदि में गुरु, 32 ऐसे जिनके अंत में गुरु, 32 ऐसे जिनके आदि में लघु और ३२ ही ऐसे जिनके अंत में लघु होंगे। सब वृत्तों को मिलाकर 384 वर्ण होंगे; इत्यादि, इत्यादि।

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