varNprastaar meaning in hindi

वर्णप्रस्तार

  • स्रोत - संस्कृत

वर्णप्रस्तार के हिंदी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • पिंगल या छंदः शास्त्र में वह क्रिया जिसके द्वारा यह जाना जाता है कि अमुक संख्यक वर्णों के इतने वृत्त-भेद हो सकते हैं और उन भेदों के स्वरूप इस प्रकार होंगे

    विशेष
    . जितने वर्णों का प्रस्तार बढ़ाना हो, उतने वर्णों का पहला भेद (सर्वगुरु) लिखें। फिर गुरु के नीचे लघु लिखकर शेष ज्यों का त्यों लिखें। फिर सबसे बाईं ओर के गुरु के नीचे लघु लिखकर आगे ज्यों का त्यों लिखे; और बाईं ओर जितनी न्यूनता रहे, उतनी गुरु से भरें। यह क्रिया अंत तकअर्थात् सर्वलघु भेद के आने तक करें। उदाहरण के लिए तीन वर्णों का प्रस्तार इस प्रकार होगा— रूप भेद SSS पहला ISS दूसरा SIS तीसरा IIS चौथा SSI पाँचवाँ ISI छठा SII सातवाँ III आठवाँ इस प्रस्तार से प्रकट हुआ कि तीन वर्णों के आठ ही भेद हो सकते हैं; अर्थात् आठ ही प्रकार के वृत्त बन सकते हैं, अधिक नहीं।

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