शर्म के पर्यायवाची शब्द
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अधिवास
निवासस्थल, वास स्थान, रहने की जगह, बस्ती
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अपत्रपा
'अपत्रपण'
- अयन
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आगार
घर, मकान, मंदिर
- आयतन
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आलय
मनुष्यों द्वारा छाया हुआ वह स्थान, जो दीवारों से घेरकर रहने के लिए बनाया जाता है
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आवास
रहने की जगह, निवास स्थान, मकान, घर, रहने के लिए आवंटित कराया हुआ या किराए आदि पर निश्चित अवधि के लिए लिया हुआ अस्थाई घर
- ओक
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कुटी
जंगलों या देहात में रहने के लिये घास फूस से बनाया हुआ छोटा घर, पर्णशाला, कुटिया, झोपड़ी
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कृंतन
काटने की क्रिया या भाव, कर्त्तन, कतरना, खंड़-खंड़ करना, टुकड़े-टुकड़े करना
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कानि
लोकलज्जा, मर्यादा का ध्यान
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गृह
ईंट, पत्थर, चूने, सीमेन्ट आदि से बना हुआ वह निवास-स्थान जहाँ कोई व्यक्ति (अथवा परिवार) रहता हो, घर, मकान, आश्रम
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गेह
घर, मकान, निवासस्थान
- घर
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झेंप
वह मनोभाव जो स्वभावतः अथवा संकोच, दोष आदि के कारण दूसरों के सामने सिर उठाने या बोलने नहीं देता है
- त्रपा
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धाम
महाभारत के अनुसार एक प्रकार के देवता
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निकेत
घर, मकान, स्थान, जगह
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निकेतन
मनुष्यों द्वारा छाया हुआ वह स्थान, जो दीवारों से घेरकर रहने के लिए बनाया जाता है, वासस्थान, निवास, निकेत, साकेत, घर, मकान
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निकृंतन
काटने की क्रिया, काटना, छेदन, विदारण, खंडन
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निकाय
समूह, झुंड़
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निलय
१, मकान, घर
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निवेश
विवाह
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पत
पति, खसम, खाविंद
- भय
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भवन
कोल्हू के चारों ओर का वह चक्कर जिसमें बैल घूमते हैं
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भीरुता
डरपोकपन, कायरता, भयशीलता, बुज़दिली
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मंदाक्ष
लज्जा, शर्म
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मंदिर
वासस्थान
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मर्यादा
'मर्य्यादा'
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मुरव्वत
उदारता; भलमनसत; सज्जनता
- मान
- लज्जा
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लज्या
'लज्जा'
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लाज
लज्जा , शर्म , हया , क्रि॰ प्र॰—आना , —करना
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लिहाज़
व्यवहार या बरताव से किसी बात का ध्यान , कोई काम करते हुए उसके संबंध में किसी बात का ख्याल, क्रि॰ प्र॰—करना , —रखना
- व्रीड़ा
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वेश्म
घर, मकान
- वास
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विनय
व्यवहार में दीनता या अधीनता का भाव, नम्रता, प्रणति
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विनयशीलता
विनम्र होने का भाव
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शाला
घर, गृह, मकान
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संकोच
सिकुड़ने की क्रिया, खिंचाव, तनाव, जैसे- अंगसंकोच, गात्रसंकोच
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हया
अनुचित या अनैतिक काम करने से रोकने वाली लज्जा, व्रीड़ा, लज्जा, लाज, शर्म
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ह्री
लज्जा, व्रीड़ा, शर्मं, हया, संकोच
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ही
एक अव्यय जिसका व्यवहार जोर देने के लिये या निश्चय, अनन्यता, अल्पता, परिमिति तथा स्वीकृति आदि सूचित करने के लिये होता है, जैसे,— (क) आज हम रुपया ले ही लेंगे, (ख) वह गोपाल ही का काम है, (ग) मेरे पास दस ही रुपए हैं, (घ) अभी यह प्रयाग ही तक पहुँचा होगा, (च) अच्छा भाई हम न जायँगे, गोपाल ही जायँ, इसके अतिरिक्त और प्रकार के भी प्रयोग इस शब्द के प्राप्त होते हैं, कभी इस शब्द से यह ध्वनि निकलती है कि 'औरों की बात जाने दीजिए', जैसे,—तुम्हीं बताओ इसमें हमारा क्या दोष ?
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