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1.
लोलकी
कान का वह भाग जो गालों के किनारे इधर उधर नीचे को लटकता रहता है, इसी में छेद करके कुंडल या बाली आदि पहनते हैं
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2.
लोलकर्ण
लोगों की बात सुनने वाला आदमी, सबकी बातें सुनने वाला
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3.
लोल
चंचल , चपल, कंपायमान
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4.
लोल
हिलता-डोलता, कंपायमान, क्षुब्ध, अशांत, निर्लज्ज, धृष्ट, बेहया, ढीठ
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5.
लोलकुचइया
एक गोल रोटी जो कार्तिक में बनाई जाती है, कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियाँ मास के अन्त में कार्तिक पूजन के लिए जो पकवान बनाती हैं उसमें मोइन देकर अँगूठे से भी मोटी, बड़ी, मीठी पूड़ी बनाकर उसको मध्यम आँच देकर कढ़ाई में तलती हैं, यही लोल कुचइया कहलाती है, सा.श.