chandraayaN meaning in braj
चांद्रायण के ब्रज अर्थ
- व्रत विशेष
चांद्रायण के हिंदी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
-
महीने भर का एक कठिन व्रत जिसमें चंद्रमा के घटने, बढ़ने के अनुसार आहार घटाना बढ़ाना पड़ता है।
विशेष
. मिताक्षरा के अनुसार इस व्रत का करने वाला शुक्ल प्रतिपदा के दिन त्रिकालस्नान करके एक ग्रस मोर के अंडे के बराबर का खाकर रहे। द्रितीया को दो ग्रास खाए। इसी प्रकार क्रमश: एक-एक ग्रास नित्य बढ़ाता हुआ पूर्णिमा के दिन पंद्रह ग्रास खाए। फिर कृष्णप्रतिपदा को चौदह ग्रास खाए। द्रितीया को तेरह, इसी प्रकार क्रमश: एक एक ग्रास नित्य घटाता हुआ कृष्ण चतुर्दशी के दिन एक ग्रास खाए और अमावस्या के दिन कुछ न खाए, उपवास करे, इस व्रत में ग्रासों की संख्या आरंभऔर अत में कम तथा बीच में अधिक होती है, इसी से इसे यदमध्य चांद्रायण कहते हैं। इसी व्रत को यदि कृष्ण प्रतिपदा से पूर्वेंक्त क्रम से (अर्थात् प्रतिपदा को चौदह ग्रास, द्रितीया को तेरह इत्यादि) आरंभ करे और पूर्णिमा को पूरे पंद्रह ग्रास खाकर समाप्त करे तो वह पिपिलिका तनुमध्य चांद्रायण भी होगा। कल्पतरु के मत से एक यतिचांद्रायण होता है, जिसमें एक महीने तक नित्य तीन-तीन ग्रास खाकर रहना पड़ना है, सुभीते के लिये चांद्रायण व्रत का एक और विधान भी है, इसमें महीने भर के सब ग्रासों को जोड़कर तीस से भाग देने से जितने ग्रास आते हैं, उतने ग्रास नित्य खाकर महीने भर रहना पड़ता है, महीने भर के ग्रासो की संख्या 25 होती है, जिसमें तीस का भाग देने से 7 1/2 ग्रास होते हैं, पल प्रमाण का एक ग्रास लेने से पाव भर के लगभग अन्न होता है अत: इतना ही हविष्यान्न नित्य खाकर रहना पड़ता है, मनु, पराशर, बौद्धायन, इत्यादि सब स्मिृतियों में इसव्रत का उल्लेख है, गोतम के मत से इस व्रत के करने वाले को चंद्रलोक की प्राप्ति होती है, स्मृतियों में पापों और अपराधों के प्रायश्चित्त के लिए भी इस व्रत का विधान है। -
एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में 11 ओर 10 के विराम से 21 मात्राएँ होती हैं पहले विराम पर जगण और दूसरे पर रगण होना चाहिए
उदाहरण
. हरि हर कृपानिधान परम पद दीजिए, प्रभु जू दयानिकेत, शरण रख लीजिए।
चांद्रायण के तुकांत शब्द
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