दिक्-शूल

दिक्-शूल के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

दिक्-शूल के अँग्रेज़ी अर्थ

Noun, Masculine

  • see दिशाशूल

दिक्-शूल के हिंदी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • फलित ज्योतिष के अनुसार कुछ विशिष्ट दिनों में कुछ विशिष्ट दिशाओं में काल का वास जो कुछ विशेष योगिनियों के योग के कारण माना जाता है

    विशेष
    . जिस दिन जिस दिशा में कुछ विशिष्ट योगिनियों के योग के कारण इस प्रकार काल का वास और दिक्-शूल माना जाता है, उस दिन उस दिशा की ओर यात्रा करना बहुत ही अशुभ और हानिकराक माना जाता है। कहते हैं, दिक्-शूल में यात्रा करने से मनोरथ कभी सिद्ध नहीं होता, आर्थिक हानि होती है, कोई न कोई रोग हो जाता है, और यहाँ तक कि कभी- कभी यात्री की मृत्य भी हो जाती है। निम्नलिखित दिशाओं में निम्नलिखित वारों को दिक्-शूल माना जाता है— पश्चिम की ओर शुक्र और रविवार को, उत्तर " " मंगल " बुधवार को पूर्व " " शनि " सोमवार को दक्षिण " " बृहस्पति वार को किसी-किसी के मत से बुध और बृहस्पतिवार को दक्षिण की ओर, बृहस्पतिवार को चारों कोणों की ओर, रवि तथा शुक्रवार को पश्चिम दिशा की ओर शूल होता है। पहले और प्रधान मत के संबंध में यह श्लोक है—'शनौ चन्द्रे त्यजेत् पूर्वम्, दक्षिणस्याम् दिशौ गुरौ। सूर्य शुक्रे पश्चिमाशाम्, बुधे भौमे तथोत्तरे।' लोगों ने एक चौपाई भी बना ली है जो इस प्रकार है—सोम सनीचर पुरब न चालू । मंगल बूध उत्तर दिस कालू। आदित शुक्र पश्चिम दिस राहु। बीफै दछिन लंक दिस दाहू।

    उदाहरण
    . शुक्र और रविवार को पश्चिम, मंगल और बुद्ध को उत्तर, सोम और शनि को पूर्व और बृहस्पतिवार को दक्षिण दिशा में दिक्-शूल माना जाता है।

दिक्-शूल के मैथिली अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • दिशानुसार यात्रा के लिए बुरा दिन

Noun, Masculine

  • a bad day for journey

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