दिव्य

दिव्य के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

दिव्य के अँग्रेज़ी अर्थ

Adjective

  • divine, celestial
  • charming, beautiful
  • brilliant

दिव्य के हिंदी अर्थ

विशेषण

  • स्वर्ग से संबंध रखने वाला, स्वर्गीय
  • आकाश से संबंध रखने वाला, अलौकिक
  • प्रकाशमान, चमकीला
  • बहुत बढ़िया या अच्छा, जो देखने में बहुत ही सुंदर या भला मालूम हो, ख़ूब साफ़ या सुंदर

    उदाहरण
    . आज हमने बहुत दिव्य भोजन किया है। . उन्होंने एक बहुत दिव्य भवन बनवाया था।

  • लोक से परे, लोकातीत

संज्ञा, पुल्लिंग

  • गेहूँ की तरह का एक पौधा जिसके दानों का आटा बनता है, यव, जौ
  • एक काँटेदार पेड़ से प्राप्त गोंद जो सुगंध के लिए जलाया जाता है, गुग्गुल

    उदाहरण
    . उसने दुकान से दिव्य और लोहबान ख़रीदा।

  • आँवला
  • एक झाड़दार बेल, शतावर

    उदाहरण
    . दिव्य की जड़ें और बीज औषध बनाने के काम में आते हैं।

  • ब्राह्मी
  • सफे़द दूब
  • हड़
  • लौंग
  • सूअर
  • तत्व या यथार्थता को जानने वाला व्यक्ति, तत्ववेत्ता

    उदाहरण
    . इस सभा में बड़े-बड़े दिव्य पुरुषों ने हिस्सा लिया।

  • हरिचंदन
  • अष्टवर्ग के अंतर्गत महामेदा नाम की औषधि
  • कपूरकचरी
  • चमेली
  • जीरा
  • धूप में बरसते हुए पानी से स्नान
  • तीन प्रकार के केतुओं में से एक, वे केतु जिनकी स्थिति भूवायू से ऊपर है
  • तांत्रिकों के आचार के तीन भावों में से एक जिससे पंच मकार, श्मशान और चिता का साधन विधेय है
  • आकाश में होने वाला एक प्रकार का उत्पात
  • तीन प्रकार के नायकों में से एक, वह नायक जो स्वर्गीय या अलौकिक हो

    विशेष
    . साहित्य ग्रंथों में तीन प्रकार के नायक माने गए हैं दिव्य, अदिव्य और दिव्यादिव्य। दिव्य नायक स्वर्गीय या अलौकिक होते हैं, जैसे- देवता आदि और अदिव्य नायक सांसरिक या लौकिक जैसे मनुष्य। दिव्यादिव्य नायक वे होते हैं जो होते तो मनुष्य हैं पर जिनमें गुण देवताओं के होते हैं। जैसे- नल, पुरुरवा, अर्जुन आदि। इसी प्रकार तीन प्रकार की नायिकाएँ भी होती है।

    उदाहरण
    . इंद्र, राम, कृष्ण आदि।

  • व्यवहार या न्यायालय में प्राचीन काल की एक प्रकार की परीक्षा जिसमें किसी मनुष्य का अपराधी या निरपराध होना सिद्ध होता था

    विशेष
    . ये परीक्षाएँ नौ प्रकार की है- घट, अग्नि, उदक, विष, कोष, तंडुल, तप्तमाषक, फूल और धर्मज। इनमें तुला या घट, अग्नि, जल, विष और कोष ये पाँच परिक्षाएँ भारी अपराधों के लिए; तंडुल चोरी के लिए, तत्पमाषक बड़ी भारी चोरी के लिए और फूल तथा धर्मज साधारण अपराधों के लिये हैं। स्मृतियों आदि में यह भी लिखा है कि ब्राह्मण की तुला से, क्षत्रिय की अग्नि से, वैश्य की जल से और शूद्र की विष से परीक्षा लेनी चाहिए। बालक, वृद्ध, स्त्री और आतुर की परीक्षा भी घट या तुला विधि से ही होनी चाहिए। स्त्रियों की विषपरीक्षा और शिशिर तथा हेमंत में रोगियों की जलपरीक्षा, कोढ़ियों की अग्निपरीक्षा और शराबियों, लंपटों, जुआरियों, धूर्तों और नास्तिकों की कोषपरीक्षा कदापि न होनी चाहिए। शीतकाल में जलपरीक्षा, ग्रीष्म में अग्निपरिक्षा, वर्षा में विषपरीक्षा और प्रात:काल के समय तुलापरीक्षा नहीं होनी चाहिए। धर्मज और घटपरीक्षा सब ऋतुओं में और अग्निपरीक्षा वर्षा, हेमंत और शिशिर में तथा जलपरीक्षा ग्रीष्म में होनी चाहिए। अग्नि, घट और कोषपरीक्षा सबेरे, जलपरीक्षा दोपहर को और विषपरीक्षा रात को होनी चाहिए। बृहस्पति जिस समय सिंहस्थ या मकरस्थ हों अथवा भृगु अस्त हों, उस समय कोई दिव्य या परीक्षा न होनी चाहिए। मलमास में और अष्टमी तथा चतुर्दशी को भी परीक्षा नहीं होनी चाहिए। परीक्षा के दिन से एक दिन पहले परीक्षा देने और लेने वाले दोनों का उपवास करना चाहिए और कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार राजसभा में सब लोगों के सामने दिव्य या परीक्षा होनी चाहिए। किसी-किसी के मत से 'तुलसी' नामक एक प्रकार का दिव्य भी है; पर इसके विषय में कोई विशेष बात नहीं मिलती। तुलापरीक्षा में शोध्य या अभियुक्त को बड़े तराज़ू पर बैठाकर दो बार अदल-बदल कर तौलते थे। दूसरी बार की तोल में यदि वह बढ़ जाता तो शुद्ध और बराबर उतर गया या घट जाता तो दोषी समझा जाता था। अग्निपरीक्षा में तपाए हुए लोहे को अंजुली में लेकर सात मंडलों के भीतर धीरे-धीरे चलना पड़ता था। यदि हाथ न जलता तो अभियुक्त निर्दोष समझा जाता था। जलपरीक्षा में अभियुक्त को जल में गोता लगाना पड़ता था। गोता लगाने के समय तीन बाण छोड़े जाते थे। तीसरा बाण ठीक उसी समय छूटता था जब अभियुक्त जल में डूबता था। बाण छूटते ही एक आदमी वेग से उस स्थान पर दौड़ जाता था जहाँ बाण गिरता और एक दूसरा आदमी उस बाण को लेकर तुरंत उस स्थान पर दौड़कर आता था जहाँ से बाण छूटा था। यदि इसके वहाँ पहुँचने तक अभियुक्त जल ही में रहता तो वह निर्दोष समझा जाता था। विषपरीक्षा में विशेष मात्रा में विष खिलाया जाता था। यदि विष पच जाता तो अभियुक्त निर्दोष माना जाता था। कोषपरीक्षा में किसी देवता के स्नान का तीन अंजुलि जल पिलाया जाता था। यदि 14 दिन के भीतर उक्त देवता के कोप से अभियुक्त को कोई घोर दुःख न होता तो वह निर्दोष या सच्चा माना जाता था। इसी प्रकार की और भी परीक्षाएँ थीं।

    उदाहरण
    . कुल नौ प्रकार की दिव्य परीक्षाएँ होती थीं। . साँप सभा साबर लकार भए देउँ दिव्य दुसहु साँसति कीजै आगे ही या तन की।

  • शपथ, विशेषत: देवताओं आदि की शपथ, सौगंध, क़सम
  • यम का एक नाम

दिव्य के पर्यायवाची शब्द

संपूर्ण देखिए

दिव्य के मैथिली अर्थ

विशेषण

  • स्वर्गीय, ईश्वरीय, देवोचित, अलौकिक
  • उज्ज्वल, सुन्दर, भव्य
  • रोचक

Adjective

  • divine
  • brilliant, charming

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