मृग-तृष्णा

मृग-तृष्णा के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

मृग-तृष्णा के मैथिली अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • जल की लहरों की वह मिथ्या प्रतीति जो कभी-कभी रेगिस्तान में कड़ी धूप पड़ने पर होती है

Noun, Feminine

  • mirage

मृग-तृष्णा के हिंदी अर्थ

मृगतृष्णा, मृगतृष्ना

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • जल या जल की लहरों की वह मिथ्या प्रतीति जो कभी-कभी ऊपर मैदानों में भी कड़ी धूप पड़ने के समय होती है, तेज़ धूप और गरमी में रेगिस्तानी क्षेत्र में जलधारा या पानी दिखने का भ्रम, मृग-मरीचिका

    विशेष
    . गरमी के दिनों जब वायु तहों का धनत्व उष्णता के कारण असमान होता है, तब पृथ्वी के निकट की वायु अधिक उष्ण होकर ऊपर को उठना चाहती है, परंतु ऊपर की तहें उठने नहीं देती, इससे उस वायु की लहरें पृथ्वी के समानांतर बहने लगती है । यही लहरें दुर से देखने में जल को धारा सी दिखाई देती हैं । मृग इससे प्रायः धोखा खाते हैं, इससे इसे मृगतृष्णा, मृगजल आदि कहते हैं ।

  • ऐसी तृष्णा जिसकी पूर्ति प्रायः असंभव हो

मृग-तृष्णा के पर्यायवाची शब्द

संपूर्ण देखिए

मृग-तृष्णा के ब्रज अर्थ

मृगतृष्णा

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • मृग-मारीचिका, मृग जल, मिथ्या प्रतीति

    उदाहरण
    . रजनी गत बासर मृगतृप्ना रस हरि को न चयो । . रजनी गत बासर मृगतृप्ना रस हरि को न चयो ।

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