मुकरी

मुकरी के अर्थ :

मुकरी के हिंदी अर्थ

हिंदी ; संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • एक प्रकार की कविता , तह मुकरी , वह कविता जिसमें प्रारंभिक चरणों में कही हुई बात से मुकरकर उसके अंत में भिन्न अभिप्राय व्यक्त किया जाय

    विशेष
    . यह कविता प्रायः चार चरणों की होती है इसके पहले तीन चरण ऐसे होते हैं; जिनका आशय दो जगह घट सकता है । इनसे प्रत्यक्ष रूप से जिस पदार्थ का आशय निकलता है, चौथे चरण में किसी और पदार्थ का नाम लेकर, उससे इनकार कर दिया जाता है । इस प्रकार मानों कही हुई बात से मुकरते हुए कुछ और ही अभिप्राय प्रकट किया जाता है । अंमीर खुसरी ने इस प्रकार की वहुत सी मुकरियाँ कही हैं । इसके अंत में प्रावः 'सखी' या 'सखिया' भी कहते हैं ।

    उदाहरण
    . वा बिन मोको चैन न आवे । वह मेरी तिस आन बुझावे । है वर सब गुन बारह बानी । ऐ सखि साजन ? ना सथि पानी । . रात समय मेरे घर आवे । भोर भए वह घर उठ जावे । यह अचरज है सब से न्यारा । ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा । . आप हिले औ मोहिं हिलावे । वाका हिलना मोको भावे । हिल हिल के वह हुआ निसंखा । ऐ सखि साजन ? ना सखि पंखा । . सारि रैन वह मो सँग जागा । भोर भोई तव बिछुड़न लागा । बाके बिछुड़त फाटे हिया । ऐ सखि साजन ? ना सखि दिया ।

मुकरी के ब्रज अर्थ

स्त्रीलिंग

  • कविता विशेष , यह प्रायः चार चरणों की होती है

मुकरी के मगही अर्थ

अरबी ; संज्ञा

  • (मकरी) धूरी को निश्चित स्थान पर रखने के लिए लाठा में बंधी लकड़ी, मकरी; एक प्रकार की कविता यथा: अमीर खुसरों की मुकरियाँ

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