निदर्शना

निदर्शना के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत
  • अथवा - निदरसना

निदर्शना के ब्रज अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • अर्थालंकार का एक भेद जहाँ दो पदार्थों में भिन्नता होते हुए भी उपमा द्वारा उनके संबंध की कल्पना की जाय

निदर्शना के हिंदी अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • एक अर्थालंकार जिसमें एक बात किसी दूसरी बात को ठीक-ठीक कर दिखाती हुई कही जाती है और यह छह प्रकार की होती है, एक अर्थालंकार जिसमें उपमेय और उपमान में समानता का आरोप करके दोनों में बिंब-प्रतिबिंब भाव प्रकट किया जाता है

    विशेष
    . इस अंलंकार के भिन्न-भिन्न लक्षण आचार्यों ने लिखे हैं। जहाँ होता हुआ वस्तुसंबंध और न होता हुआ वस्तुसंबध दोनों बिबानुबिंब भाव से दिखाए जाते हैं वहाँ निदर्शना होती है। उ॰—संपदयुत चिर थिर रहत नहिं कोउ जनहिं तपाय। चरमाचल चलि भानु सब कहे रहे जनाय। (साहित्य- दर्पण)। न होता हुआ वस्तुसंबंध जहाँ उपमा की कल्पना करे (प्रथम निदर्शना); अथवा जहाँ क्रिया से ही अपने और अपने हेतु के संबंध की उक्ति हो वहाँ निदर्शना अलंकार होता है (दूसरी निदर्शना)। उ॰—लघु उन्नत पद प्राप्त ह्वै तुरतहि लहत निपात। गिरि ते काँकर बात बस गिरत कहत यह बात। (काव्यप्रकाश कारिका)। दंडों का यह लक्षण है— अर्थांतर में प्रवृत्त कर्ता द्वारा अर्थांतर के सदृश जो सत् या असत् फल दिखाया जाता है वह निदर्शना है। चंद्रालोककार का लक्षण-सदृश वाक्यार्थों की एकता का आरोप निदर्शना है।

    उदाहरण
    . कहाँ सूर्य को वंश अरू कहाँ मोरि मति छुद्र। मैं डूडे ,सों मोहवश चाहत तरयो समुद्र। . सरिसंगम हित चले ठेलते नाले पत्थर। दिखालाते पथरोध प्रेमियों का अति दुष्कर। . लघु उन्नत पद प्राप्त ह्वै तुरताहि लहत निपात। गिरि तें काँकर बात बस गिरत कहत यह बात। . जंगजीत जे चहत है ती सों वैर बढ़ाय। जीबे की इच्छा करत कालकूट ते खाय। . उदय होन दिननाथ इत अथवत उत निशिराज। द्वय घंटायुत द्बिरद की छवि धारत गिरी आज। . जात चंद्रिका चंद्र सह विद्दुत घन सह जाय। पिय सहगमन जो तियन को जड़ हु देत दिखाय।

निदर्शना के मैथिली अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • काव्य का एक अलंकार

Noun, Feminine

  • a figure of speech

निदर्शना के तुकांत शब्द

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