टँगना

टँगना के अर्थ :

टँगना के हिंदी अर्थ

संस्कृत ; अकर्मक क्रिया

  • किसी वस्तु का किसी उँचे आधार पर बहुत थोड़ा सा इस प्रकार अटकना या ठहरा रहना कि उसका प्रायः सब भाग उस आधार से नीचे की ओर गया हो , किसी वस्तु का दूसरी वस्तु से इस प्रकार बँधना या फँसना अथवा उसपर इस प्रकार टिकना या अटकना कि उसका (प्रथम वस्तु का) बहुत सा भाग नीचे की ओर लटकता रहे , लटकना , जैसे, (खूँटी पर) कपड़े टँगना, परदा टंगना, तसवीर टँगना

    विशेष
    . यदि किसी वस्तु का बहुत सा अंश आधार पर हो और थोड़ा सा अंश आधार के नीचे लटका हो तो उस वस्तु को टंगी हुई नहीं कहेंगे । 'टँगना' और 'लटकना' में यह अंतर है कि 'टँगना' क्रिया में वस्तु के फसने या टिकने या अटकने का भाव प्रधान है और 'लटकना' में उसके बहुत से अंश का नीचे की ओर अधर में दूर तक जाने का भाव । . जाना । . उठना ।— . संयो॰ क्रि॰—

  • फाँसी पर चढ़ना , फाँसी लटकना , संयो क्रि॰—जाना

संस्कृत ; संज्ञा, पुल्लिंग

  • वह आड़ी बँधी हुई रस्सी जिसपर कपड़े आदि टाँगे या रखे जाते हैं, अलगनी, बिलगनी
  • जुलाहों की वह रस्सी जिसमें उठौनी टाँगी जाती है
  • वह फंदा जिसे मेटी, लोटे आदि के गले में फंसाकर हाथ में लटकाए हुए ले चलने के लिये बनाते हैं

टँगना के बुंदेली अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • टाँगे, टँगना बड़ाओ, चलते बने, (मुहावरे में प्रयुक्त) टाँगने या लटकाने के लिए बनाये जाने वाला साधन

टँगना के मगही अर्थ

अरबी ; संज्ञा

  • कपड़ा रखने, पसारने या लटकाने की रस्सी या तार; दो लटकती रस्सियों से बँधा जमीन के समानांतर डंडा, अलना, अलगनी, असगेनी; ढेंकी के पौदर की ओर सहारा लेने का साधन, डंडा, रस्सी आदि का साधन; लटकने अथवा लटकाने का साधन

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