Tiryakstrotas meaning in hindi
तिर्यकस्त्रोतस् के हिंदी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- वह जिसका फैलाव आड़ा हो
-
जीव जिसके पेट में खाया हुआ आहार आड़ा होकर जाता हो, वह जीव जिसका आहार निगलने का नल आड़ा हो, पशु-पक्षी
विशेष
. पुराणों में जीव सृष्टि के उर्धस्त्रोतस्, तिर्यकस्त्रोतस् आदि कई वर्ग किए गए हैं। भागवत में तिर्यकस्त्रोतस् 28 प्रकार के माने गए हैं— (1) द्विक्षुर (दो खुर वाले)— गाय, बकरी, भैंस, कृष्णसार मृग, सूअर, नीलगाय, रुरु नामक मृग। (2) एकक्षुर—गदहा, घोड़ा, खच्चर, गौरमृग, शरम, सुरा-गाय । (3) पंचनख— कुत्ता, गीदड़, भेड़िया, बाघ, बिल्ली, खरहा, सिंह, बंदर, हाथी, कछुवा, मेढक इत्यादि।(4) जल-चर— मछली । (5) खेचर— गीध, बगला, मोर, हंस, कौवा आदि पक्षी। ये सब जीव ज्ञानशून्य और तमोगुण विशिष्ट कहे गए हैं। इनके अंतःकरण में किसी प्रकार का ज्ञान नहीं बतलाया गया है।
तिर्यकस्त्रोतस् के तुकांत शब्द
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