vidheyaavimarsh meaning in hindi
विधेयाविमर्ष के हिंदी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
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साहित्य में एक वाक्य-दोष जो विधेय अंश को अप्रधान स्थान प्राप्त होने पर होता है, जो बात प्रधानतः कहनी है, उसका वाक्य-रचना के बीच दबा रहना
विशेष
. प्रत्येक वाक्य में विधेय की प्रधानता के साथ निर्देश होना चाहिए। ऐसा न होना दोष है। 'विधेय' शब्द के समास के बीच पड़ जाने से या विशेषण रूप से आ जाने पर प्रायः यह दोष होता है। जैसे,—किसी वीर ने खिन्न होकर कहा— 'मेरी इन व्यर्थ फूली हुई बाहों से क्या'। इस वाक्य में कहने वाले का अभिप्राय तो यह है मेरी बाहें व्यर्थ फूली हैं; पर 'फूली हैं' के विशेषण रूप में आ जाने से विधेय की प्रधानता नहीं स्पष्ट होती। दूसरा उदाहरण—'मुझ रामानुज के सामने राक्षस क्या ठहरेंगे ।' यहाँ कहना चाहिए था कि—'मैं राम का अनुज हुँ' तब राम के संबंध से लक्ष्मण की विशेषता प्रकट होती।
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