viithii meaning in english

वीथी

वीथी के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

वीथी के अँग्रेज़ी अर्थ

Noun, Feminine

  • gallery

वीथी के हिंदी अर्थ

वीथि

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • दृश्य काव्य या रूपक के 27 भेदों में से एक भेद

    विशेष
    . यह एक ही अंक का होता है और इसमें एक ही नायक होता है। इसमें आकाशभाषित और शृंगार रस की अधिकता रहती है। प्राचीन काल में ऐसे रूपक अलग भी खेले जाते थे और दूसरे नाटकों के साथ भी। इसके 13 अंग माने गए हैं—(1) उद्घाटक (2) अदलगित (3) प्रपंच (4) त्रिगत (5) छलन (6) वाक्केली (7) अधिबल (8) गंड (9) अवश्यंदित (10) नालिका (11) असत्प्रलाप (12) व्याहार और (13) मृदद। धनंजय ने अपने दशरूपक में वीथी के इन तेरह अंगों का उल्लेख करके कहा है कि सूत्रधार इन वीथ्यंगों के द्वारा अर्थ और पात्र का प्रस्ताव करके प्रस्तावना के अंत में चला जाए और तब वस्तुप्रपंचन आरंभ हो। साहित्यदर्पण के अनुसार वीथी के अंग ही प्रहसन के भी अंग हो सकते हैं। अंतर केवल यही है कि वीथी में तो इनका होना आनश्यक है, पर प्रहसन में ऐच्छिक होता है। अतः कहा जा सकता है, वीथी और प्रहसन दोनों प्रस्तावना के ऐसे अंशों को कहते थे, जिनमें हास्य रस की अधिकता होती थी और जिनके द्वारा सामाजिकों या दर्शकों के मन में अभिनय के प्रति रुचि या उत्कंठा उत्पन्न की जाती थी।

  • मार्ग, रास्ता, सड़क
  • वह आकाशमार्ग जिससे होकर सूर्य चलता है, रविमार्ग
  • आकाश में नक्षत्रों के रहने के स्थानों के कुछ विशिष्ट भाग जो वीथी या सड़क के रूप में माने गए हैं, जैसे—नागवीथी, गजवीथी, ऐरावतीवीथी, गोवीथी, मृगवीथी आदि

    विशेष
    . अकाश में उत्तर, मध्य और दक्षिण में क्रमशः ऐरावत, जरद्भव और वैश्वानर नामक तीन स्थान माने गए हैं; और इनमें से प्रत्येक स्थान में तीन तीन वीथियाँ हैं। इस प्रकार कुल नौ वीथियों में सत्ताईस नक्षत्र समान भागों में विभक्त हैं; अर्थात् प्रत्येक वीथी में तीन-तीन नक्षत्रों का अवस्थान माना गया है।

  • हाट, बाज़ार, पण्यवीथिका
  • मकान में सामने का छज्जा
  • घुड़दौड़ का चक्राकार मार्ग
  • चित्रों की पंक्ति
  • (पुरातत्व) भवन में आने-जाने के लिए लता, गुल्म आदि से आच्छादित छोटा रास्ता

वीथी के पर्यायवाची शब्द

संपूर्ण देखिए

वीथी के ब्रज अर्थ

वीथि, वीथिका

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • गली, प्रतोली, गैल, राह, सड़क

    उदाहरण
    . कंधा व्योम वीथिका भरे है भूरि धूमकेतु।


  • दृश्य काव्य या रूपक के 27 भेदों में से एक भेद

    विशेष
    . यह एक ही अंक का होता है और इसमें एक ही नायक होता है। इसमें आकाशभाषित और शृंगार रस की अधिकता रहती है। प्राचीन काल में ऐसे रूपक अलग भी खेले जाते थे और दूसरे नाटकों के साथ भी। इसके 13 अंग माने गए हैं—(1) उद्घाटक (2) अदलगित (3) प्रपंच (4) त्रिगत (5) छलन (6) वाक्केली (7) अधिबल (8) गंड (9) अवश्यंदित (10) नालिका (11) असत्प्रलाप (12) व्याहार और (13) मृदद। धनंजय ने अपने दशरूपक में वीथी के इन तेरह अंगों का उल्लेख करके कहा है कि सूत्रधार इन वीथ्यंगों के द्वारा अर्थ और पात्र का प्रस्ताव करके प्रस्तावना के अंत में चला जाए और तब वस्तुप्रपंचन आरंभ हो। साहित्यदर्पण के अनुसार वीथी के अंग ही प्रहसन के भी अंग हो सकते हैं। अंतर केवल यही है कि वीथी में तो इनका होना आनश्यक है, पर प्रहसन में ऐच्छिक होता है। अतः कहा जा सकता है, वीथी और प्रहसन दोनों प्रस्तावना के ऐसे अंशों को कहते थे, जिनमें हास्य रस की अधिकता होती थी और जिनके द्वारा सामाजिकों या दर्शकों के मन में अभिनय के प्रति रुचि या उत्कंठा उत्पन्न की जाती थी।

  • मार्ग, रास्ता, सड़क
  • वह आकाशमार्ग जिससे होकर सूर्य चलता है, रविमार्ग
  • आकाश में नक्षत्रों के रहने के स्थानों के कुछ विशिष्ट भाग जो वीथी या सड़क के रूप में माने गए हैं, जैसे—नागवीथी, गजवीथी, ऐरावतीवीथी, गोवीथी, मृगवीथी आदि

    विशेष
    . अकाश में उत्तर, मध्य और दक्षिण में क्रमशः ऐरावत, जरद्भव और वैश्वानर नामक तीन स्थान माने गए हैं; और इनमें से प्रत्येक स्थान में तीन तीन वीथियाँ हैं। इस प्रकार कुल नौ वीथियों में सत्ताईस नक्षत्र समान भागों में विभक्त हैं; अर्थात् प्रत्येक वीथी में तीन-तीन नक्षत्रों का अवस्थान माना गया है।

  • हाट, बाज़ार, पण्यवीथिका
  • मकान में सामने का छज्जा
  • घुड़दौड़ का चक्राकार मार्ग
  • चित्रों की पंक्ति

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