दधीचि

दधीचि के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

दधीचि के गढ़वाली अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • एक प्रसिद्ध ऋषि जिनकी हड्डी से इन्द्र का वज्र बना था

Noun, Masculine

  • name of a renowned sage whose bones were used as weapons of Indra.

दधीचि के हिंदी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • एक वैदिक ऋषि जो यास्क के मत से अथर्व के पुत्र थे और इसीलिए दधीचि कहलाते थे। किसी पुराण के मत से ये कर्दम ऋषि की कन्या और अथर्व की पत्नी शांति के गर्भ से उत्पन्न हुए थे और किसी पुराण के मत से ये शुक्राचार्य के पुत्र थे

    विशेष
    . वेदों और पुराणों में इनके संबंध में अनेक कथाएँ हैं। जिनमें से विशेष प्रसिद्ध यह है कि इंद्र ने इन्हें मधुविद्या सिखाई थी और कहा था कि यदि तुम यह विद्या बतलाआगे तो हम तुम्हें मार डालेंगे। इस पर अश्वियुगल ने दधीचि का सिर काटकर अलग रख दिया और तब उनसे धड़ पर घोड़े का सिर लगा दिया और तब उनसे मधुविद्या सीखी। जब इंद्र को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने आकर उनका घोड़ेवाला सिर काट डाला। इस पर अश्वियुगल ने उनके धड़ पर फिर वही मनुष्य वाला पहला सिर लगा दिया। एक बार वृत्रासुर के उपद्रव से बहुत दुःखित होकर सब देवता इंद्र के पास गए। उस समय निश्चित हुआ कि दधीचि कि हड्डियों के बने हुए अस्त्र के अतिरिक्त और किसी अस्त्र से वृत्रासुर मारा न जा सकेगा। इसलिए इंद्र ने दधीचि से उनकी हड्डियाँ माँगी। दधीचि ने अपने पुराने शत्रु और हत्याकारी इंद्र को भी विमुख लौटाना उचित न समझा और उनके लिए अपने प्राण त्याग दिए। तब उनकी हड्डियों से अस्त्र बनाकर वृत्रासुर मारा गया। तभी से दधीचि का बड़ा भारी दानी होना प्रसिद्ध है। महाभारपत में यह भी लिखा है कि जब दक्ष ने, हरिद्वार में बिना शिव जी के यज्ञ किया था, तब इन्होंने दक्ष को शिव जी के निमंत्रित करने के लिए बहुत समझाया था, पर उन्होंने नहीं माना। इसलिए ये यज्ञ छोड़कर चले गए थे। एक बार दधीचि बड़ी, कठिन तपस्या करने लगे। उस समय इंद्र ने डरकर इन्हें तप से भ्रष्ट करने के लिए अलंबुषा नामक अप्सरा भेजी। एक बार जब ये सरस्वती तीर्थ में तपस्या कर रहे थे तब अंलबुषा उनके सामने पहुँची। उसें देखकर इनका वीर्य स्खलित हो गया जिससे एक पुत्र हुआ। इसी से उस पुत्र का नाम सारस्वता हुआ।

दधीचि के कन्नौजी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • एक प्रसिद्ध ऋषि जिनकी हड्डी से इन्द्र का वज्र बना था

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