हरदौल

हरदौल के अर्थ :

हरदौल के बुंदेली अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • ओरछा के प्रसिद्ध राजा वीरसिंह देव के प्रथम पुत्र, बुंदेलखण्ड के गाँव-गाँव में इनको ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है, विवाह में हर प्रकार की मूर्ति के लिए इनकी मनौती की जाती है

हरदौल के हिंदी अर्थ

संस्कृत, पंजाबी ; संज्ञा

  • ओड़छा के राजा जुझारसिंह (सन् १६२६-३५ ई॰) के छोटे भाई

    विशेष
    . ये बड़े सच्चे और भ्रातृभक्त थे। एक बार जब महाराज जुझार सिंह दिल्ली के बादशाह के काम से गए थे, तब वे राज्य का प्रबंध अपने छोटे भाई हरदत्तसिंह या हरदौल सिंह के उपर छोड़ गए थे। इनके सुशासन में बेईमानों की नहीं चलने पाई थी। इससे जब महाराज जुझार सिंह लौटकर आए, तब उन सब ने मिलकर राजा को यह सुझाया कि हरदौल के साथ महारानी (उनकी भावज) का अनुचित संबंध है। महारानी अपने देवर को बहुत प्यार करती थीं और हरदत्त भी उन्हें अपनी माता के समान मानते थे। राजा ने अपने संदेह की बात रानी से कही और यह भी कहा कि हम तुम्हें सच्ची तभी मान सकते हैं जब तुम अपने हाथ से हरदौल को विष दो। रानी ने अपने सतीत्व की मर्यादा के विचार से स्वीकार किया और हरदौल को विषमिश्रित मिठाई खिलाने को बुलाया। हरदौल के आने पर रानी ने सब व्यवस्था कही। सुनते ही हरदौल ने कहा कि माता तुम्हारे सतीत्व की मर्यादा की रक्षा के लिए मैं सहर्ष इसे खाऊँगा। इतना कहकर वे भावज के हाथ से मिठाई लेकर झट से खा गए और थोड़ी देर में परलोक सिधारे। इस घटना का प्रजा पर बड़ा प्रभाव पड़ा और सब लोग हरदौल की देवता के समान पूजा करने लगे। धीरे-धीरे इनकी पूजा का प्रचार बहुत बढ़ा और सारे बुंदेलखंड में ही नहीं बल्कि संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) और पंजाब तक ये पूजने लगे। इनकी चौरी या वेदी स्थान स्थान पर बनी मिलती हैं और बहुत से घरानों में ये कुलदेवता के रूप में पूज्य माने जाते हैं। इन्हें हरदिया देव भी कहते हैं।

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