पाशुपत

पाशुपत के अर्थ :

  • स्रोत - संस्कृत

पाशुपत के मैथिली अर्थ

संज्ञा

  • 'शिवसँ प्राप्त', एक धार्मिक दर्शन

Noun

  • a religious philosophy of Shaivism.

पाशुपत के हिंदी अर्थ

विशेषण

  • पशुपति संबंधी, शिवसंबधी
  • पशुपति का
  • शिव द्वारा प्रदत्त
  • शिवकथित्

संज्ञा, पुल्लिंग

  • पशुपति या शिव का उपासक, एक प्रकार का शैव
  • एक सांप्रदायिक दर्शन जिसका उल्लेख सर्वदर्शनसंग्रह में है, इसे नकुलीश पाशुपति दर्शन भी कहते हैं

    विशेष
    . इस दर्शन में जीव मात्र की 'पशु' संज्ञा है। सब जीवों के अधीश्वर पशुपति शिव हैं। भगवान् पशुपति ने बिना किसी कारण, साधन या सहायता के इस जगत् का निर्माण किया इससे वे स्वतंत्र कर्ता हैं। हम लोगों से भी जो कार्य होते हैं उनके भी भूल कर्ता परमेश्वर ही हैं, इससे पशुपति सब कार्यों के करण स्वरुप हैं। इस दर्शन में मुक्ति दो प्रकार की कही गई है। एक तो सब दुःखों की अत्यंत निवृत्ति, दुसरी पार- मैश्वर्य प्राप्ति। और दार्शनिकों ने दुख की अत्यंत निवृत्ति को ही मोक्ष कहा है। किंतु पाशुपत दर्खन कहता है कि केवल दुःख की निवृत्ति ही मुक्ति नहीं हैं, जब तक साथ ही पारमैश्वर्यप्राप्ति भी न हो तबतक केवल दुःखनिवृत्ति से क्या? पारमैश्वर्य मुक्ति दो प्रकार की शक्तियों की प्राप्ति है- दृक् शक्ति और क्रिया शक्ति। दृक् शक्ति द्वारा सब वस्तुओं और विषयों का ज्ञान हो जाता है, चाहे वे सूक्ष्म से सूक्ष्म, दूर से दूर, व्यवहित से व्यवहित हों। इस प्रकार सर्वज्ञता प्राप्त हो जाने पर क्रिया शक्ति सिद्ध होती है जिसके द्वारा चाहे जिस बात की इच्छा हो वह तुरंत हो जाती है। उसकी इच्छा की देर रहती है। इन दोनों शक्तियों का सिद्ध हो जाना ही पारमैश्वर्य मुक्ति है।

  • शिव का कहा हुआ तंत्रशास्त्र
  • अथर्ववेद का एक उपनिषद
  • वक पुष्प, अगस्त का फूल

पाशुपत के यौगिक शब्द

संपूर्ण देखिए

पाशुपत के ब्रज अर्थ

विशेषण

  • शिव संबंधी

पाशुपत के तुकांत शब्द

संपूर्ण देखिए

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