ras meaning in bajjika
रस के बज्जिका अर्थ
संज्ञा
- शीरा
रस के अँग्रेज़ी अर्थ
Noun, Masculine
- juice
- (aesthetic) relish
- sentiment
- pleasure, enjoyment
- taste, flavour
रस के हिंदी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- छह की संख्या
-
वह अनुभव जो मुँह में डाले हुए पदार्थों का रसना या जीभ के द्वारा होता है, खाने की चीज़ का स्वाद, रसनेंद्रिय का संवेदन या ज्ञान
विशेष
. हमारे यहाँ वैद्यक में मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त और कषाय ये छह रस माने गए हैं और इसकी उत्पत्ति भूमि, आकाश, वायु और अग्नि आदि के संयोग से जल में मानी गई है। जैसे—पृथ्वी और जल के गुण की अधिकता से मधुर रस, पृथ्वी और अग्नि के गुण की अधिकता से अम्ल रस, जल और अग्नि के गुण की अधिकता से तिक्त रस और पृथ्वी तथा वायु की अधिकता से कषाय रस उत्पन्न होता है। इन छहों रसों के मिश्रण से और छत्तीस प्रकार के रस उत्पन्न होते है। जैसे,—मधुराम्ल, मधुरतिक्त, अम्ललवण, अम्लकटु, लवणकटु, लवणतिक्त, कटुतिक्त, तिक्तकषाय आदि। भिन्न-भिन्न रसों के भिन्न-भिन्न गुण कहे गए हैं। जैसे—मधुर रस के सेवन से रक्त, मांस, मेद, अस्थि और शुक्र आदि की वृद्धि होती है। अम्ल रस जारक और पाचक माना गया है। लवण रस पाचक और संशोधक माना गया है।कटु रस पाचक, रेचक, अग्नि दीपक और संशोधक माना गया है। तिक्त रस रूचिकर और दिप्तिवर्धक माना गया है और कपाय रस संग्राहक और मल, मूत्र तथा श्लेष्मा आदि को रोकने वाला माना गया है। न्याय दर्शन के अनुसार रस नित्य और अनित्य दो प्रकार का होता है। परमाणु रूप रस नित्य और रसना द्वारा गृहीत होने वाला रस अनित्य कहा गया है। - किसी पदार्थ का सार, तत्व
-
वैद्यक के अनुसार शरीर के अंदर की सात धातुओं में से पहली धातु
विशेष
. सुश्रुत के अनुसार मनुष्य जो पदार्थ खाता है, उससे पहले द्रव स्वरूप एक सूक्ष्म सार बनता है, जो रस कहलाता है। इसका स्थान ह्वदय कहा गया है। जहाँ से यह धमनियों द्वारा सारे शरीर में फैलता है। यही रस तेज़ के साथ मिलकर पहले रक्त का रूप धारण करता है और तब उससे मांस, मेद, अस्थि, शुक्र आदि शेष धातुएँ बनती है। यदि यह रस किसी अस्थि अम्ल या कटु हो जाता है, तो शरीर में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करता है। इसके दूषित होने से अरूचि, ज्वर शरीर का भारीपन, कृशता, शिथिलता, दृष्टिहीनता आदि अनेक विकार उत्पन्न होती है।उदाहरण
. रस के अंतर्गत शरीर में उपस्थित पानी आता है। -
साहित्य में वह आनंदात्मक चित्तवृत्ति या अनुभव विभाव, अनुभाव और संचारी से युक्त किसी स्थायी भाव के व्यंजित होने से उत्पन्न होता है, मन में उत्पन्न होने वाला वह भाव या आनंद जो काव्य पढ़ने अथवा अभिनय देखने से उत्पन्न होता है
विशेष
. हमारे यहाँ आचार्यों में इस विषय में बहुत मतभेद है कि रस किसमें तथा कैसे अभिव्यक्त होता है। कुछ लोगों का मत है कि स्थायी भावों की वास्तविक अभिव्यक्ति मुख्य रूप से उन लोगों में होती है, जिनके कार्यों का अभिनय किया जाता है। (जैसे—राम, कृष्ण, हरिश्चंद्र आदि) और गौण रूप से अभिनय करने वाला नटों, में होता है। अतः इन्हीं में ये लोग रस की स्थिति मानते हैं। ऐसे आचार्यों का मत है कि अभिनय देखने वालों या काव्य पढ़ने वालों के साथ रस का कोई संबंध नहीं है। इसके विपरीत अधिक लोगों का यह मत है कि अभिनय देखने वालों तथा काव्य पढ़ने वालों में ही रस की अभिव्यक्ति होती है। ऐसे लोगों का कथन है कि मनुष्य के अंतःकरण में भाव पहले से ही विद्यमान रहते है और काव्य पढ़ने अथवा नाटक देखने के समय वही भाव उद्दीप्त होकर रस का रूप धारण कर लेते हैं। और यही मत ठीक माना जाता है। तात्पर्य यह कि पाठकों या दर्शकों का काव्यों अथवा अभिनयों से जो अनिर्वचनीय और लोकोत्तर आनंद प्राप्त होता है, साहित्य शास्त्र के अनुसार वही रस कहलाता है। हमारे यहाँ रति, हास, शोक, उत्साह, भय, जुगुप्सा, आश्चर्य और निर्वेद इन नौ स्थायी भावों के अनुसार नौ रस माने गए है। जिनके नाम इस प्रकार है।—शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अदभुत और शांत। द्दश्य काव्य के आचार्य शांत को रस नहीं मानते। वे कहते हैं कि यह तो मन की स्वाभाविक भावशून्य अवस्था है। निर्वेद मन का कोई विकार नहीं है। अतः वे रसों की संख्या आठ ही मानते हैं। और कुछ लोग इन नौ रसों के सिवा एक और दसवाँ रस 'वात्सल्य' भी मानते है।उदाहरण
. रस की संख्या नौ मानी गई है। - नौ की संख्या
-
सुख का अनुभव, आनंद, मज़ा
उदाहरण
. जेहि किए जीव निकाम वस रस हीन दिन दिन अति नई। . ओठ खंडिए कौ अरयौ मुख सुवास रस मत्त। स्याम रूप नँदलाल अलि नहिं अलि अलि उन्मत। . यह जानिए वर दीन। पितु ब्रह्म के रसलीन। - प्रेम, प्रीति, मुहब्बत
-
कामक्रीड़ा, केलि, विहार
उदाहरण
. दलित कपोल रद दलित अधर रुचि रसना रसनि रस रस में रिसाति है। -
उमंग, जोश, वेग
उदाहरण
. आजान- बाहु परकाज रत स्वामिभक्त रस रंग नय। . जल कारन प्रन किए करत रस रत ललकारन। श्याम अनुज बल धाम बने सँग सुभट हजारन। -
गुण, सिफ़त
उदाहरण
. तिहुँ देवन की द्युति सी दरसै गति सोषै त्रिदोषन के रस की। . सम रस समर सकोच बस बिबस न ठिकु ठहराय। फिरि फिरि उझकति फिरि दुरति दुरि दुरि उझकति जाय। -
किसी विषय का आनंद
उदाहरण
. जो जो जेहि जेहि रस मह, तहँ सो मुदित मन मानि। - कोई तरल या द्रव पदार्थ
- जल, पानी
-
वनस्पतियों या फलों आदि में का वह जलीय अंश जो उन्हें कूटने, दबाने या निचोड़ने आदि से निकलता है
उदाहरण
. ऊख का रस, आम का रस, तुलसी का रस अदरक का रस। . नीम की पत्तियों का रस पीने तथा लगाने से चर्म रोग दूर होता है। - शोरबा, जूस, रसा
- वह पानी जिसमें मीठा या चीनी घुली हुई हो, शरबत
-
वृक्ष का निर्यास
उदाहरण
. गोंद, दुघ, मद आदि। - लासा, लूआब
- घोड़ों और हाथियों का एक रोग जिसमें उनके पैरों में से जहरीला पानी बहता है
- वीर्य
- राग
- विष, जहर
- पारा
- हिंगुल, शिंगरफ़
-
वैद्यक में धातुओं को फूँककर तैयार किया हुआ भस्म, जिसका व्यवहार औषध के रूप में होता है
उदाहरण
. रससिंदूर। - पहले खिंचाव का शोरा जो बहुत तेज़ और अच्छा होता है
- आनंदस्वरूप ब्रह्म (उपनिषद्)
-
केशव के अनुसार रगण और सगण
उदाहरण
. मगन नगन को मित्र गनि यगन भगन को दास। उदासीन जन जानिए रस रिपू केशव दास। - बोल नामक गंधद्रव्य
- एक प्रकार की भेड़ जो गिलगित (गिलगिट) से उत्तर और पमीर मे पाई जाती है
-
भाँति, तरह, प्रकार, रूप
उदाहरण
. एक ही रस दुनी न हरष सोक साँसति सहति। -
मन की तरंग, मौज, इच्छा
उदाहरण
. तिनका बयारि के बस। ज्यों भावे त्यों उड़ाइ लै जाइ अपने रस। - सोना
-
दूध
उदाहरण
. गोरस। - जैनों के अनुसार दूध, दही, चीनी नमक या इसी प्रकार का और कोई पदार्थ बिल्कुल छोड़ देना और कभी ग्रहण न करना
-
किसी ग्रंथि या कोशिका से स्रावित होने वाला वह द्रव जिसका शारीरिक क्रियाओं में महत्व है
उदाहरण
. लार, हार्मोन आदि रस हैं । -
किसी पदार्थ का सार या तत्व
उदाहरण
. रस कई तरह के होते हैं । -
वृक्षों के शरीर से निकलने वाला या पाछकर निकाला जाने वाला तरल पदार्थ
उदाहरण
. कुछ वृक्षों के निर्यास औषधि के रूप में प्रयोग किए जाते हैं । -
वैद्यक के मत से शरीरस्थ सात धातुओं में से पहली
उदाहरण
. रस के अंतर्गत शरीर में उपस्थित पानी आता है । -
वनस्पतियों अथवा उनके फूल, फल,पत्तों आदि में रहने वाला वह तरल पदार्थ जो दबाने, निचोड़ने आदि पर निकलता या निकल सकता है
उदाहरण
. नीम की पत्तियों का रस पीने तथा लगाने से चर्म रोग दूर होता है । -
साहित्य में कथानकों, काव्यों, नाटकों आदि में रहने वाला वह तत्व जो अनुराग, करुणा, क्रोध, रति आदि मनोभावों को जागृत, प्रबल तथा सक्रिय करता है
उदाहरण
. रस की संख्या नौ मानी गई है । - पकी हुई तरकारी आदि में का पानी वाला अंश
- वह पानी जिसमें शक्कर, खाँड़ आदि घुला हो
- खाने-पीने की चीज़ मुँह में पड़ने पर उससे जीभ को होने वाला अनुभव
- किसी पदार्थ का वह रस जो भभके आदि से खींचने पर निकले
- किसी बात में रुचि होने के कारण उससे मिलने वाला या लिया जाने वाला सुख
- फल, फूल आदि में रहने वाला जलीय अंश या तरल पदार्थ
- निर्यास; मद
- किसी चीज़ को उबालने पर निकलने वाला तरल सार भाग
- (काव्यशास्त्र) विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के योग से होने वाली अनुभूति; किसी रचना को पढ़ने, सुनने अथवा नाटक को देखने से मन में उत्पन्न होने वाला भाव
- वृक्षों के शरीर से निकलने या पोछकर निकाला जानेवाला तरल पदार्थ, निर्यास, मद, (सैप) जैसे-ताड़, शाल आदि वृक्षों में से निकला या निकाला हुआ रस
- वनस्पतियों अथवा उनके फूल-पत्तों आदि में रहनेवाला वह जलीय अंश या तरल पदार्थ जो उन्हें कूटने, दबाने, निचोड़ने आदि पर निकलता या निकल सकता है, (जूस) जैसे-अंगूर, ऊख, जामुन आदि का रस
रस के पर्यायवाची शब्द
संपूर्ण देखिएरस के यौगिक शब्द
संपूर्ण देखिएरस से संबंधित मुहावरे
रस के अंगिका अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- किसी वस्तु के खाने का स्वाद, शरीरस्थ धातु विषेश कोई तरल पदार्थ, गुण, किसी पदार्थ का सार आनंद, प्रेम, जलीय अंश, धातुओं को फूक कर बनाया हुआ भस्म
रस के अवधी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- शर्बत; जूस; आनंद, लाभ
रस के कन्नौजी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- स्वाद, रसेन्द्रिय का ज्ञान - मधुर, कटु आदि. 2. मन में उत्पन्न होने वाला वह भाव जो काव्य पाठ या अभिनय दर्शन आदि से होता है 3. तरल पदार्थ, जल. 4. फलों, वनस्पतियों का जलीय अंश, जो कूटने, दबाने या निचोड़ने से निकलता है
रस के कुमाउँनी अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- आनन्द, मजा, श्री; शोभा, 'मुखड़म रस निछ'; सब्जी, तर- कारी आदि की तरी
रस के गढ़वाली अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- किसी पदार्थ या विषय का सारभाग, तत्व, सत्त
- वनस्पतियों अथवा उनके फूल पत्तों आदि में रहने वाला तरल पदार्थ
- काव्य में आनन्द देने वाले शृंगार, हास्य, वीर, करुण,आदि रस
- स्वाद, रसेन्द्रिय का ज्ञान (मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त)
Noun, Masculine
- liquid sap, juice
- gravy, broth,essence
- any of the several sentiments characterising a literary wok.
- taste, savour, flavour, pleasure
रस के बुंदेली अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
- फलों आदि में अन्तर्निहित जल, आनन्द, सुस्वाद बु, स्वाद, तत्वसार, विभाव, अनुभाव और संचारियों के योग द्वारा व्यंजित स्थायी भाव से उत्पन्न आनन्द (ये नौ प्रकार के माने गये हैं-श्रृंगार, हास्य, करूण, वीर, वीभत्स, रौद्र, भयानक, शान्त, अद्भुत)आनन्द, प्रेम, उमंग, रसा, शरबत, वीर्य, अमृत, विष
रस के ब्रज अर्थ
संज्ञा, पुल्लिंग
-
आनंद , साहित्य को आनंदात्मक चित्तवृत्ति विशेष , यह अनुभाव, विभाव और संचारी भावों से युक्त हो स्थायी भाव के व्यंजित होने पर उत्पन्न होती है
उदाहरण
. उ0-बीरा परस्पर खात, रस अंग अंग बतात । -
प्रेम , केलि , काम क्रीड़ा
उदाहरण
. कहि कहिये यो रंग क्यों, ना वह रस ना मित्त । -
अमृत ; रसौषध , आयुर्वेदानुसार सप्त धातुओं में से एक ; पारा
उदाहरण
. पुरिया एक लाख तिहि माहीं, नृप रस कहो जगाती काहीं । - पानी , ७ मल का तरल अंश , ८. धातुओं को फूंक कर बनाया हुआ द्रव्य
अकर्मक क्रिया
- टपकना, रिसना; रसपान करना; प्रेमासक्त होना ; तन्मय होना
रस के मगही अर्थ
संज्ञा
- तरल पदार्थ; पानी में घुली चीनी आदि का द्रव, शरबत; फल, ईख आदि का निचोड़ा सार पदार्थ; आनंद; स्वाद; सार वस्तुः धातुओं को जलाकर तैयार औषधि गुणयुक्त भष्म; किसी वस्तु में विद्यमान पानी का अंश; मिट्टी या खेत की नमी; सब्जी आदि का शोरबा; साहित्य के शृंगार आदि नौ
रस के मैथिली अर्थ
संज्ञा
- फल आदिसें बहराएल जल
- माधुर्य आदि गुण जे जौहौं बूझल जाइत अछि
- काव्यक शृङ्गार आदि भावोद्रेक
- रुचि, आनन्द, सुखानुभव
- माटिक उत्पादन-शक्ति, उर्वरता
- आयुर्वेद मे रासायनिक औषध
- घोर, सिरका, पसाओल द्रव
- रसें-रसें “मन्द-मन्द, शनैःशनैः
Noun
- sap, juice.
- taste, savour.
- poetic sentiment.
- interest, taste, pleasure.
- fertility of soil.
- chemical (other than herbal) medicine.
- solution, liquid extract, soup.
- slowly, gently".
अन्य भारतीय भाषाओं में रस के समान शब्द
पंजाबी अर्थ :
रसा - ਰਸਾ
रस - ਰਸ
गुजराती अर्थ :
रस - રસ
द्रव - દ્રવ
काव्यानंद - કાવ્યાનંદ
उर्दू अर्थ :
शोरबा - شوربہ
जज़्बा - جذبہ
कोंकणी अर्थ :
रस
रोस
काव्यानंद
रस के तुकांत शब्द
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